Thursday ,21st November 2024

18 मार्च 1922 में ब्रितानी अदालत ने राजद्रोह के मामले में महात्मा गांधी को 6 साल की सजा सुनाई थी.

18 मार्च 1922 में ब्रितानी अदालत ने राजद्रोह के मामले में महात्मा गांधी को 6 साल की सजा सुनाई थी.

 

आज ही के दिन 1922 में ब्रितानी अदालत ने सविनय अवज्ञा आंदोलन के बाद राजद्रोह के मामले में महात्मा गांधी को 6 साल की जेल की सजा सुनाई थी.

सत्य और अहिंसा को हथियार बनाकर भारत की आजादी के लिए लड़ने वाले मोहनदास करमचंद गांधी को राजद्रोह के मामले में ब्रितानी अदालत ने सजा सुनाई. 1922 में गांधी जी ने “यंग इंडिया” नाम का एक लेख लिखा. इसके कारण देश में कई जगहों में लोग भड़क उठे और ब्रितानी सरकार परेशान हो गई. लेकिन ब्रितानी अदालतों में भी महात्मा गांधी का बहुत सम्मान था. उन्हें सजा सुनाते हुए जज ने कहा कि अगर बाद में सरकार उनकी सजा कम करेगी तो इसकी सबसे ज्यादा खुशी उन्हें ही होगी.

1919 में भारत में अपना औपनिवेशिक राज चला रहे ब्रितानी हुक्मरानों ने रॉलैट एक्ट पेश किया. इस एक्ट के तहत राजद्रोह के आरोप लगने पर किसी भी भारतीय को बिना सुनवाई के ही सजा दी जा सकती थी. राज के इसी एक्ट के विरोध में महात्मा गांधी ने 'सत्याग्रह' आंदोलन शुरू किया. यह एक अहिंसात्मक आंदोलन के रूप में ही शुरु हुआ जिसे सविनय अवज्ञा आंदोलन कहा गया. लेकिन लोग इस आंदोलन से जुड़ते गए और यह जंगल की आग जैसे फैल गया.

इसी कड़ी में उत्तर प्रदेश के चौरीचौरा में प्रदर्शन कर रहे लोग हिंसक हो गए. भीड़ ने पुलिस स्टेशन में आग लगा दी और वहां मौजूद 22 लोगों की मौत हो गई. इस हिंसक घटना के बाद महात्मा गांधी ने आंदोलन वापस ले लिया. लेकिन ब्रितानी सरकार ने उनको देशद्रोह का दोषी करार देकर 6 साल की जेल की सजा सुना दी, जो 18 मार्च से शुरू हुई. सिर्फ दो साल के बाद ही 1924 में लगातार खराब होती सेहत को देखते हुए उन्हें जेल से रिहा कर दिया गया.

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