मध्य प्रदेश के भोपाल में जन्मा ये पत्रकार अपनी धारदार खबरों के लिए जाना जाता है .. देश प्रेम और समाज की सेवा का सपना देखने वाला ये युवा पत्रकारिता के ग्लैमर से इतना प्रभावित हुआ की इसे अपने जीवन में मिशन की तरह देखने लगा ,इसकी भावना सैनिक बन देश की सेवा करने की थी पर वो सपना सपना ही रह गया .. अपनी स्नातक की पढाई पूरी करके पत्रकारिता में डिग्री की उसके बाद देश सेवा का ज़ज्बा लिए ये पत्रकारिता में कूद पड़े और अग्निबाण अख़बार में ट्रेनिग पुरी करके अपने पत्रकारिता की शुरुआत नवभारत से की भोपाल के राष्ट्री हिंदी मेल में अभी अपनी धारदार कलम को रोज़ ये धार लगाते मिल जायेंगे।
धारवार से जब मेरी मुलाकात हुई तो ऐसा लगा जैसे मानो पत्रकारिता की धार यही से निकलती हो इनका पत्रकारिता को लेकर नजरिया कुछ इस प्रकार है पत्रकारिता अगर बेदाग करनी है तो आय का स्त्रोत पत्रकारिता के साथ कोई और भी होना जरुरी है क्योंकि उस तन्खा में आप कभी भी संतुष्ट नहीं होगे और फिर शब्दों में धार भी नहीं होगी ..
पत्रकारिता को लेकर इनकी सोच भी बड़ी धारदार है धारवार पत्रकारिता के बारे में बताते है की .... क्या संचारक यानी जो पत्रकार है वो महज एक डाकिया है जो केवल यहां की सूचना वहां पहुंचा दे, बिना ये जाने कि वो सूचना क्या है जाहिर है नहीं। तो क्या वो सूचना को पढ़े और ‘अपने हिसाब’ से आगे बढ़ाए तो फिर हर एक का जो ‘अपना हिसाब’ होगा उसका हिसाब कौन रखेगा. क्या सुंदर चॉकलेटी चेहरे जिनको विषय की समझ नहीं है वो उसे प्रेषित करते रह सकते हैं और वो पत्रकार भी कहलाएंगे और नाम भी पाएंगे और सेलेब्रिटी बन जाएंगे फिर उनमें और सिनेमा के अभिनेता/अभिनेत्रियों में क्या फर्क़ है बात सिर्फ़ सूचना पहुंचाने भर की भी नहीं है जिस मुद्दे या विषय़ विशेष की जानकारी पहुंचाई जा रही है उसके बारे में ख़ुद पत्रकार को कितना मालूम है इसी पर तो उस ख़बर का संप्रेषण निर्भर करेगा इसीलिए कुछ ऐसे क्षेत्र हैं जिनमें दख़ल ही विशेषज्ञ पत्रकारों का है।
हर बड़े और सम्मानित मीडिया संस्थान को इन विषयों के विशेषज्ञ रखने ही होते हैं। खिलाड़ी और दर्शक से बेहतर समझ और विश्लेषण की क्षमता अगर खेल पत्रकार में नहीं होगी, आंकड़े तथ्य और संदर्भ नहीं होंगे बताने को तो कोई क्यों पढ़ेगा/सुनेगा आपकी बात .. पर पत्रकार की चुनौती तो इससे कहीं ज़्यादा बड़ी है। उसे कानून, चिकित्सा, विज्ञान, रक्षा या जिस भी विषय की रिपोर्टिंग वो कर रहा है उसके सभी पहलुओं को समझते हुए आमफहम भाषा में समझाना है, लिखना है। हथेली पर सरसों जमाना है। तराजू में मेंढ़क तौलना है। …. और हां, लगातार ये ध्यान रखना है कि वो कहीं भी स्वयं किरदार नहीं है, वो सिर्फ़ संवाहक है।
कई बार बड़ी गड़बड यहीं होती है। तो चुनौती तो है पर विषय की विशेषज्ञता एक ऐसा विषय है जिसको लेकर पत्रकारिता के संस्थानों में भी बहुत काम होना है। पत्रकारिता में डूबने का, गहरे आनंद का, अपने पसंद के विषय में महारत हासिल कर उसे भाषा के अलंकार के साथ पाठक/श्रोता/दर्शक तक पहुंचाने का एक रोमांचक सिलसिला है पता नहीं पत्रकारिता पर होने वाली तमाम चर्चा-बहस-गोष्ठी चुने हुए महत्वपूर्ण विषयों से शुरू होकर टीआरपी, मीडिया का व्यवसायीकरण और आंदोलनकारी पत्रकारों की स्थिति पर क्यों ख़त्म हो जाती है शायद ये ज़्यादा बड़ा दर्द है, शायद ये ज़्यादा तालियाँ खींचता है, और शायद मीडिया को गाली देना शगल हो गया है, शायद पत्रकारों को मेले वाले उस बावले बाबा की तरह ख़ुद की पीठ पर कोड़े मारने में बहुत मज़ा आता है, शायद ये पत्रकारों के रोज़गार की ऐसी चर्चा है जो बस पत्रकार ही करते हैं, वो सबके बारे में लिखते हैं पर उनके बारे में सही बात जनता तक कम ही पहुंचती है। …तो ये सारे ‘शायद’ सच भी हैं तो भी मीडिया और पत्रकारिता को चुनिंदा विषयों पर परिणाममूलक, तथ्यपरक और ज़िन्दा बहसों की बहुत आवश्यकता है। हृ
देश धारवार से चर्चा कुछ नया सिखा गयी और पत्रकारिता का ये धारदार हथियार मेरे हाथ लग गया .. हृदेश धारवार को मेरी शुभकामना की वो पत्रकारिता में एक नया आयाम लिखे
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