Monday ,3rd February 2025

बाघ संरक्षण में भारत की तारीफ, अन्य वैज्ञानिकों को संदेह

एक अंतरराष्ट्रीय रिपोर्ट में कहा गया है कि भारत में एक दशक में बाघों की आबादी दोगुनी हो गई है और इससे दूसरे देश सबक ले सकते हैं. अन्य वैज्ञानिकों ने इस रिपोर्ट का स्वागत किया है लेकिन इसका सोर्स डाटा मांगा
अंतरराष्ट्रीय पत्रिका 'साइंस' में छपी इस रिपोर्ट में कहा गया है कि भारत ने यह सफलता बाघों को शिकार और हैबिटैट के नुकसान से बचा कर हासिल की है. साथ ही यह भी सुनिश्चित किया गया कि बाघों के लिए पर्याप्त शिकार उपलब्ध रहे, इंसानों और वन्य जीवों के बीच टकराव कम हो और बाघों वाले इलाकों में समुदायों का जीवन स्तर भी बढ़े.

राष्ट्रीय बाघ संरक्षण प्राधिकरण (एनटीसीए) के अनुमान के मुताबिक भारत में 2010 से 2022 के बीच बाघों की आबादी करीब 1,706 से बढ़ कर लगभग 3,682 हो गई. इस अनुमान के मुताबिक दुनियाभर में जितने बाघ हैं, उनमें से 75 प्रतिशत भारत में ही हैं.

रिपोर्ट में यह भी कहा गया है कि बाघों की आबादी बढ़ने का उनके इलाकों के आस पास रहने वाले समुदायों को भी लोगों के आने जाने और ईकोपर्यटन से हुई कमाई से फायदा हुआ है. रिपोर्ट के मुताबिक भारत की सफलता ने "महत्वपूर्ण सबक" दिया है कि संरक्षण की कोशिशें बायोडाइवर्सिटी और आसपास के समुदायों का भी भला कर सकती हैं.
इस अध्ययन के मुख्य लेखक यादवेंद्रदेव झाला बेंगलुरु में स्थित इंडियन नेशनल एकैडमी ऑफ साइंसेज में वरिष्ठ वैज्ञानिक हैं. झाला कहते हैं, "आम धारणा यह है कि जहां ज्यादा घनी इंसानी आबादी हो वहां बाघों की आबादी नहीं बढ़ सकती. लेकिन यह रिसर्च दिखा रही है कि इंसानी आबादी का घनत्व नहीं बल्कि लोगों का रवैय्या ज्यादा महत्व रखता है."
अन्य वैज्ञानिकों को संदेह
वन्यजीव संरक्षणकर्ताओं और ईकोलॉजिस्टों ने इस रिपोर्ट का स्वागत किया है लेकिन कहा है कि भारत में बाघों और अन्य वन्यजीवों का फायदा तब होगा जब इसका सोर्स डाटा अन्य वैज्ञानिकों को भी उपलब्ध कराया जाएगा. रिपोर्ट भारत सरकार द्वारा समर्थित संस्थानों के डाटा के आधार पर बनाई गई है.
वन्यजीवों की जनसंख्या का अनुमान लगाने के विशेषज्ञ ईकोलॉजिस्ट अर्जुन गोपालस्वामी ने बताया कि बाघों की निगरानी करने के भारत के आधिकारिक कार्यक्रम के अनुमान "गड़बड़" और "विरोधाभासी" रहे हैं. उन्होंने बताया कि इस रिपोर्ट में दिए गए आंकड़ों में से कुछ पिछले अनुमानों से काफी ज्यादा हैं.

लेकिन उन्होंने यह भी कहा कि ऐसा लग रहा है कि इस रिपोर्ट के नतीजों ने एक पुरानी विसंगति को ठीक कर लिया है. यह विसंगति बाघों की आबादी और उनके फैलाव को लेकर थी और वैज्ञानिक 2011 से बार बार इसके बारे में चेता रहे थे.
रिपोर्ट में कहा गया है कि बाघ कुछ ऐसे इलाकों से गायब ही हो गए जो राष्ट्रीय उद्यान, वन्य जीव अभयारण्य और दूसरे संरक्षित इलाकों के पास नहीं हैं. बाघ ऐसे इलाकों से भी गायब हो गए हैं जहां शहरीकरण बढ़ा है, इंसानों द्वारा जंगलों के संसाधनों का इस्तेमाल बढ़ा है और सशस्त्र संघर्ष बढ़े हैं.

अन्य प्रजातियों पर भी दिया जाए ध्यान
झाला ने बताया, "समुदाय के समर्थन, भागीदारी और समुदाय के फायदों के बिना हमारे देश में संरक्षण संभव नहीं है." भारत में बाघ करीब 1,38,200 वर्ग किलोमीटर में फैले हुए हैं. यह लगभग न्यूयॉर्क जितना बड़ा इलाका है. लेकिन इसमें से सिर्फ 25 प्रतिशत इलाके में शिकार पर्याप्त मात्रा में और संरक्षित हैं. इसके अतिरिक्त 45 प्रतिशत इलाका ऐसा है जहां बाघों के अलावा करीब छह करोड़ लोग भी रहते हैं.

झाला का कहना है कि वन्यजीवों को बचाने के लिए मजबूत कानून भारत में बाघ संरक्षण की "रीढ़ की हड्डी" हैं. उन्होंने कहा, "हैबिटैट अपने आप में कोई बाध्यता नहीं है, बल्कि हैबिटैट की गुणवत्ता बाध्यता है." वन्यजीव बायोलॉजिस्ट रवि चेल्लम का मानना है कि बाघ संरक्षण की कोशिशें तो आशाजनक हैं, लेकिन पूरे ईकोसिस्टम को बेहतर बनाए रखने के लिए उन्हें अन्य प्रजातियों तक भी बढ़ाने की जरूरत है."

चेल्लम इस रिपोर्ट में शामिल नहीं थे. उन्होंने कहा, "ग्रेट इंडियन बस्टर्ड और कराकल जैसी कई प्रजातियां हैं जो सब संकट में हैं. और इन पर वाकई पर्याप्त फोकस नहीं है.

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