आशुतोष पाण्डेय
विश्व आर्थिक मंच की वार्षिक बैठक में यूक्रेन युद्ध, गाजा की मानवीय स्थिति और एआई पर चर्चा होने की संभावना है. इसके अलावा, डॉनल्ड ट्रंप पर भी लोगों की नजरें रहेंगी. यूपी समेत कई भारतीय राज्य भी बैठक में हिस्सा लेंगे.
वर्ल्ड इकोनॉमिक फोरम यानी विश्व आर्थिक मंच की 55वीं वार्षिक बैठक के लिए मंच सज चुका है. 20 से 24 जनवरी तक होने वाली इस बैठक में भारत और जर्मनी समेत कई देशों के राष्ट्राध्यक्ष और प्रतिनिधि हिस्सा लेंगे. हर साल स्विट्जरलैंड के दावोस शहर में इस बैठक का आयोजन किया जाता है.
इस साल बैठक में 60 देशों और सरकारों के प्रमुखों के शामिल होने की उम्मीद है. कुल मिलाकर 130 देशों के करीब तीन हजार नेता इस साल विश्व आर्थिक मंच की बैठक में हिस्सा ले सकते हैं. इनमें जर्मनी के चांसलर ओलाफ शॉल्त्स, यूरोपीय आयोग की अध्यक्ष उर्सुला फॉन डेयर लेयन, दक्षिण अफ्रीका के राष्ट्रपति सिरिल रामफोसा और बांग्लादेश के प्रमुख सलाहकार मोहम्मद यूनुस शामिल हैं.
विश्व आर्थिक मंच के अध्यक्ष बोर्गे ब्रेंडे ने गुरुवार को पत्रकारों से कहा कि इस बैठक का आयोजन कई पीढ़ियों की सबसे जटिल भू-राजनीतिक पृष्ठभूमि में हो रहा है. लोक-लुभावन पार्टियों का उभार, यूक्रेन युद्ध, गाजा में मानवीय स्थिति, चरम मौसम की असमय होने वाली घटनाएं और आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस कुछ ऐसे मुद्दे हैं, जिन पर पांच दिवसीय बैठक के दौरान प्रतिनिधियों का ध्यान रहेगा.
कई भारतीय राज्यों के मुख्यमंत्री होंगे शामिल
इस बार भी भारत दावोस में अपनी मजबूत उपस्थिति दर्ज कराएगा. महाराष्ट्र, तमिलनाडु, आंध्र प्रदेश, तेलंगाना और केरल आदि राज्य इसमें हिस्सा लेंगे. उत्तर प्रदेश भी लगातार दूसरे साल इस बैठक में शामिल होगा. टीसीएस और इंफोसिस जैसी कई कंपनियां भी इस बैठक में अपनी सेवाओं का प्रदर्शन करेंगी.
भारत इस बैठक में दिखाएगा कि उसके यहां एआई के क्षेत्र में प्रगति करने की कितनी ज्यादा संभावना है. माइक्रोसॉफ्ट और एमेजॉन जैसी दिग्गज कंपनियां पहले ही भारत में एआई और क्लाउड कंप्यूटिंग के क्षेत्र में अरबों डॉलर का निवेश करने की प्रतिबद्धता जता चुकी हैं. भारत में आईटी पेशेवरों की उपलब्धता, डिजिटल बदलाव के लिए मजबूत सरकारी प्रयास, बड़ी मात्रा में यूजर डेटा की मौजूदगी और सस्ते इंटरनेट डेटा जैसे कारकों की वजह से कंपनियां भारत पर दांव लगा रही हैं.
धीमी गति से बढ़ रही है भारतीय अर्थव्यवस्था
भारत के प्रतिनिधिमंडल का नेतृत्व केंद्रीय रेल मंत्री अश्विनी वैष्णव करेंगे. वैष्णव के पास सूचना एवं प्रसारण मंत्रालय की जिम्मेदारी भी है. केंद्रीय मंत्री जंयत चौधरी, चिराग पासवान, सीआर पाटिल और के राममोहन नायडू भी इस बैठक में शामिल होंगे. इसके अलावा, महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री देवेंद्र फडणवीस, आंध्र प्रदेश के मुख्यमंत्री चंद्रबाबू नायडू और तेलंगाना के मुख्यमंत्री रेवंत रेड्डी भी बैठक में शामिल हो सकते हैं.
यह बैठक ऐसे समय में हो रही है, जब घरेलू खपत कमजोर होने की वजह से भारतीय अर्थव्यवस्था में धीमी बढ़ोतरी देखी जा रही है. इसके अलावा, शेयर बाजार में भी गिरावट जारी है और रुपया डॉलर के मुकाबले सबसे निचले स्तर पर पहुंच गया है. विदेशी ईंधन पर भारी निर्भरता होने की वजह से महंगाई बढ़ने का खतरा भी बना हुआ है.
डॉनल्ड ट्रंप के संबोधन में दिलचस्पी
डॉनल्ड ट्रंप 20 जनवरी को अमेरिका के अगले राष्ट्रपति के तौर पर शपथ लेंगे. इसके कुछ दिन बाद वे विश्व आर्थिक मंच की बैठक को वर्चुअली संबोधित करेंगे. ट्रंप पहले ही कई देशों से आयात पर टैरिफ लगाने की धमकी दे चुके हैं. कनाडा और ग्रीनलैंड को लेकर अपनी विस्तारवादी भावनाओं का भी इजहार कर चुके हैं. इसलिए उनके संबोधन में निवेशकों, कंपनियों और सरकारों की दिलचस्पी होगी.
नीति निर्माता और निवेशक अभी भी यह समझने की कोशिश कर रहे हैं कि व्यापार के मामले में ट्रंप क्या कदम उठाएंगे और उनसे अर्थव्यवस्था पर क्या प्रभाव पड़ेगा. अगर टैरिफ लगाए गए तो जर्मनी और चीन जैसे देशों की अर्थव्यवस्थायों को भी नुकसान होगा, जो पहले ही नकारात्मक और निराशाजनक वृद्धि दर से जूझ रही हैं. विशेषज्ञों ने चेतावनी दी है कि ट्रंप के व्यापक प्रस्तावों की वजह से कीमतें बढ़ेंगी और व्यापारिक दुश्मनी को बढ़ावा मिलेगा.
यूक्रेन, गाजा और सीरिया पर भी होगी बात
यूक्रेन में रूसी आक्रमण को तीन साल पूरे होने में कुछ ही समय बाकी है. इस साल भी बैठक के एजेंडे में यह मुद्दा शामिल है. यूक्रेन के राष्ट्रपति वोलोदिमीर जेलेंस्की भी बैठक में शामिल होंगे. यूक्रेन का विक्टर पिंचुक फाउंडेशन यूक्रेन हाउस में कई कार्यक्रमों का आयोजन करेगा. फाउंडेशन ने एक बयान में कहा, "अगर यूक्रेन गिरा तो आपके ऊपर भी तेजी से खतरा आएगा. आपकी सुरक्षा ध्वस्त हो जाएगी. आपकी अर्थव्यवस्था, कल्याण और मनचाहा जीवन जीने की संभावना खतरे में आ जाएगी.”
विश्व आर्थिक मंच ने बुधवार को एनुअल रिस्क सर्वे जारी किया था. इसमें देश आधारित सशस्त्र संघर्ष को साल 2025 का सबसे बड़ा खतरा बताया गया था. भू-आर्थिक टकराव को तीसरे नंबर का खतरा बताया गया था, जो तेजी से बिखरते वैश्विक परिदृश्य को उजागर करता है. सीरिया, गाजा में मानवीय स्थिति और मध्य पूर्व में संघर्ष के बढ़ने की आशंका पर भी इस साल नजरें रहेंगी. इस क्षेत्र के कई नेताओं के बैठक में शामिल होने की उम्मीद है
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