विवेक कुमार
भारतीय रुपये की कीमत 2014 से अब तक करीब 43 फीसदी गिर चुकी है. और विशेषज्ञों का अनुमान है कि 2025 में भी उम्मीदें कोई खास नहीं हैं.
छले कुछ सालों में मशहूर हस्तियों के जो पुराने ट्वीट या बयान सोशल मीडिया पर सबसे ज्यादा दोहराये गए हैं या उनका मजाक बना है, उनमें रुपये की कीमत पर कही बातें भी हैं.
2014 में नरेंद्र मोदी की सरकार बनने से पहले विपक्ष के तमाम नेताओं से लेकर फिल्म, खेल जगत और यहां तक कि धर्म-समाज की हस्तियों ने भी रुपये की गिरती कीमत पर टिप्पणियां की थीं. साथ ही दावे भी किए गए थे कि नई सरकार में रुपये की कीमत बेहतर होगी.
तमाम दावों और वादों के बावजूद रुपये की कीमत में गिरावट जारी है और 2024 लगातार सातवां ऐसा साल रहा जबकि भारतीय रुपये की कीमत अमेरिकी डॉलर के मुकाबले नीचे रही. 2014 में 60 रुपये प्रति डॉलर पर स्थिर रुपया, 2024 के अंत तक 85.61 रुपये प्रति डॉलर के सबसे निचले स्तर तक पहुंच गया.
यानी 10 साल में करीब 43 फीसदी की गिरावट हुई. पिछले लगातार नौ सप्ताहों से रुपये की कीमत लगातार गिरी है, जो 2013 के बाद का सबसे लंबा दौर है.
रुपये की गिरावट के मुख्य कारण
अमेरिकी डॉलर की मजबूती रुपये की कमजोरी का प्रमुख कारण रही है. 2024 के अमेरिकी राष्ट्रपति चुनाव जैसी वैश्विक घटनाओं ने भारतीय मुद्रा ही नहीं, दुनिया की तमाम मुद्राओं को प्रभावित किया है. विश्लेषकों का कहना है कि डॉलर की मजबूती ने रुपये पर निरंतर दबाव डाला है.
अमेरिकी फेडरल बैंक की कड़ी नीतियों ने डॉलर को और मजबूत किया है, जिससे अमेरिकी बॉन्ड की कीमतें बढ़ी हैं. लेकिन सिर्फ यही वजह नहीं है. भारत की अर्थव्यवस्था में सुस्ती और बढ़ते व्यापार घाटे ने भी रुपये को कमजोर किया है.
2024 की तीसरी तिमाही में, भारत की वृद्धि दर 5.8 फीसदी रही, जो 7 फीसदी के अनुमान से काफी कम थी. इसके अलावा, नवंबर 2024 में व्यापार घाटा 37.8 अरब डॉलर तक पहुंच गया, जो पिछले साल के 20.6 अरब डॉलर से लगभग 45 फीसदी की गिरावट है.
भारत में मुद्रास्फीति भी रुपये की कमजोरी का कारण बनी है. नवंबर 2024 में उपभोक्ता मूल्य सूचकांक (सीपीआई) 5.8 फीसदी पर था, जो अक्टूबर के 6.21 फीसदी से थोड़ा कम था लेकिन साल की न्यूनतम 3.65 फीसदी से बहुत ज्यादा था. कमजोर रुपया आयात महंगा करता है, जिससे मुद्रास्फीति और बढ़ती है
भारतीय रिजर्व बैंक ने 2024 में ब्याज दरों को 6.5 फीसदी पर बनाए रखा. हालांकि, नए गवर्नर संजय मल्होत्रा के नेतृत्व में, 2025 की पहली तिमाही में ब्याज दरों में कटौती और मुद्रा स्थिरता के लिए विदेशी मुद्रा बाजार में हस्तक्षेप की संभावना है लेकिन इसका असर तुरंत शायद दिखाई ना दे.
समाचार एजेंसी रॉयटर्स के मुताबिक एचडीएफसी बैंक ने एक विश्लेषण में कहा है कि आरबीआई उतार-चढ़ाव को सीमित करने के लिए हस्तक्षेप जारी रखेगा लेकिन "अन्य समकक्ष मुद्राओं, खासकर चीनी युआन पर दबाव को देखते हुए रुपये के लिए स्थिर बने रहना मुश्किल होगा.” चीन में तो आशंका जताई जा रही है कि युआन को और कमजोर किया जा सकता है.
आरबीआई ने पिछले साल भी रुपये को सहारा देने के लिए कई बड़े कदम उठाए थे. इसमें विदेशी मुद्रा भंडार का इस्तेमाल भी शामिल है जो जुलाई से सितंबर की तिमाही में 704.89 अरब डॉलर के अपने सर्वोच्च स्तर पर पहुंच गया था. आरबीआई ने रुपये को स्थिर करने के लिए उसमें से 60.5 अरब डॉलर निकाले. हालांकि इससे भी रुपया ज्यादा संभल नहीं पाया
अन्य मुद्राओं के मुकाबले रुपये का प्रदर्शन
सितंबर 2024 से दिसंबर 2024 तक, रुपया डॉलर के मुकाबले 83.67 से 85.19 तक कमजोर हुआ. हालांकि, इसी अवधि में यह यूरो (93.46 से 88.56), पाउंड (112.05 से 106.79), और येन (0.5823 से 0.5425) के मुकाबले मजबूत हुआ.
लेकिन इसकी "वास्तविक प्रभावी" शर्तों में विनिमय दर दिखाती है कि अन्य मुद्राओं को मिलाकर भी रुपये की कीमत में काफी गिरावट हुई है. भारतीय रिजर्व बैंक के ताजा आंकड़ों के अनुसार, नवंबर में रुपये की वास्तविक प्रभावी विनिमय दर (आरईईआर) 108.14 थी. नवंबर 2017 में यह 118.3 के सबसे उच्च स्तर पर थी जबकि अप्रैल 2009 में यह 94.8 थी.
आरईईआर इंडेक्स रुपये के मूल्य को न केवल डॉलर, बल्कि अन्य वैश्विक मुद्राओं के मुकाबले भी मापता है. इस मामले में, यह 40 मुद्राओं की एक टोकरी के मुकाबले रुपये की विनिमय दर का औसत है.
ये 40 मुद्राएं उन देशों की हैं, जो भारत के वार्षिक निर्यात और आयात का लगभग 88 प्रतिशत हिस्सा हैं. इस इंडेक्स में भारत और इन व्यापारिक भागीदारों के बीच मुद्रास्फीति के अंतर को भी आंका जाता है.
कमजोर रुपया निर्यात को प्रतिस्पर्धी बनाता है, लेकिन आयात, विशेषकर कच्चे तेल, की लागत बढ़ाता है. भारत अपनी कच्चे तेल की जरूरतों का 80 फीसदी से ज्यादा आयात करता है, जिससे चालू खाता घाटे पर दबाव बढ़ता है.
इसके अलावा कमजोर रुपया आयातित वस्तुओं की कीमतें बढ़ाकर मुद्रास्फीति को बढ़ावा देता है. इस स्थिति में महंगाई नीति निर्माताओं के लिए एक चुनौती बन जाती है. साथ ही, रुपये की अस्थिरता निवेशकों के विश्वास को प्रभावित करती है. स्थिर मुद्रा लंबे समय के लिए विदेशी प्रत्यक्ष निवेश (एफडीआई) को आकर्षित करने के लिए महत्वपूर्ण है.
विशेषज्ञ कहते हैं कि विकसित बाजारों में कड़ी मौद्रिक नीतियों के चलते पूंजी प्रवाह ने रुपये की कमजोरी को बढ़ाया है. दिसंबर में खत्म हुई तिमाही में विदेशी निवेशकों ने भारतीय बाजार से 11.7 अरब डॉलर निकाले हैं, जबकि वित्त वर्ष के नौ महीनों में कुल 12 अरब डॉलर का निवेश हुआ था.
2025 और उसके बाद
विश्लेषकों का कहना है कि डॉलर के मुकाबले रुपया 86 को पार कर सकता है और बढ़ते भू-राजनीतिक जोखिमों के बीच 90 तक भी जा सकता है. यानी 2025 में रुपया और कमजोर हो सकता है
भारत की गिरती विकास दर और बढ़ते व्यापार घाटे ने इस स्थिति को और मुश्किल कर दिया है. नवंबर में भारत का आयात 27 फीसदी बढ़ा जबकि इसी अवधि में निर्यात 5.3 फीसदी बढ़ा. यह दो साल में सबसे खराब मासिक स्तर था.
दिसंबर में राज्यसभा में एक सवाल के जवाब में सरकार ने कहा कि रुपये की कीमत बाजार पर निर्भर है और इसकी कीमत को लेकर उसका कोई लक्ष्य नहीं है.
वित्त राज्य मंत्री पंकज चौधरी ने राज्यसभा में लिखित उत्तर में कहा, "भारतीय रुपये की विनिमय दर पर विभिन्न घरेलू और वैश्विक कारक प्रभाव डालते हैं, जैसे डॉलर इंडेक्स की गति, पूंजी प्रवाह का रुझान, ब्याज दरों का स्तर, कच्चे तेल की कीमतों में उतार-चढ़ाव, चालू खाता घाटा आदि. आरबीआई वैश्विक स्तर पर उन प्रमुख घटनाक्रमों पर नजर रखता है, जो डॉलर के मुकाबले रुपये की विनिमय दर पर प्रभाव डाल सकते हैं.”
चूंकि दुनिया भी 2025 में अर्थव्यवस्था के मोर्चे पर गंभीर चुनौतियों का सामना कर रही है, इसलिए फिलहाल विशेषज्ञों को भी रुपये की मजबूती की ज्यादा उम्मीद नहीं है. आरबीएल बैंक के ट्रेजरी प्रमुख अंशुल चांडक ने रॉयटर्स को बताया, "हमारा अनुमान है कि 2025 में भी रुपये की गिरावट जारी रहेगी. आरबीआई हस्तक्षेप की अपनी नीतियों में बदलाव कर सकता है क्योंकि रुपये की कीमत असल से ज्यादा नजर आ रही है और इस साल विदेशी मुद्रा भंडार में से भी धन इस्तेमाल कर लिया गया है.
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