राजेन्द्र सिंह जादौन
जासूसी उपन्यासों के पात्र पुलिस इंस्पैक्टर, सैनिक, गुप्तचर, सरकारी जासूस, सी.आई.डी. एजेंट के मुख्य किरदारों से हटकर मेने जब पत्रकार को मुख्य पात्र बनाकर लिखना शुरू किया तो लोगो को लगा कि पत्रकार भी कभी हीरो हो सकता है कोई वकील अन्य वकील के खिलाफ केस लड़ता है तो ऐसा माना जाता है मानो खुद के खिलाफ लड़ रहा हो।
खैर मेने पत्रकार को हीरो बनाया और नाम दिया इन्वैसटीगेटिव रिपोर्टर मेरी कई स्टोरी हिट रही व प्रदेश की मीडिया इंडस्ट्री को भी इसने प्रभावित किया शायद मेरे लिखने का अंदाज जो खुलकर लिखना है प्रदेश की मिडिया को एक नई ऊर्जा और आईडी पकड़ कर मंत्रियो के दरवाजे खड़े रहने से भी थोड़ी बहौत निजात मिली होगी इस नई विधा के जन्म के साथ युवा पत्रकारों में थोड़ा जोश और एक नई ऊर्जा का विस्तार भी हुआ है । जिसका नाम पड़ा खोजी पत्रकारिता इससे पहले प्रदेश के पत्रकारो को जो दिखता था वो लिखता था। छुपाना संभव भी नहीं था. पत्रकारिता भ्रष्टाचार से दूर थी खोजी पत्रकारिता के प्रवेश के साथ ही हुआ भ्रष्टाचार का प्रवेश. अब पत्रकार जिस खोजी मिशन पर होता है तो कभी कभी उसके साथियों और संपादकों को भी मिशन की खबर नहीं रहती थी.
बस यही रास्ता फिसलन भरा साबित हो रहा है। वैसे तो अपनी कलम आग उगलती है और खोजी पत्रकारिता के लिए बिल्कुल परफैक्ट दिमाग. 24 में से 18 घंटे एक्शन मोड़.. सब कुछ सही हे लेकिन मंजिल आज भी दूर है, क्योकि पत्रकार का यदि कोई अन्य धंधा सैट नही है तो वह इस पेशे से गुजर बसर तो कर ही नहीं सकता बच्चों को पालना भी संभव नही फिर लग्ज़री जीवन तो असंभव की तरह है इतनाही नही 16- 18 घंटे काम लेकर अच्छे संस्थान भी ढंग का वेतन भी नहीं देते। यही वजह है कि आग उगलने वाली कलम समझौतावादी हो जाती है व खोजी दिमाग खुराफाती दिमाग बन जाता है। बाहरी गलैमर के चलते यह पेशा हर किसी को आकर्षित करता है, लेकिन लोग अंधकार पक्ष से वाकिफ नहीं हैं। अंधकार पक्ष जब सामने आता है तो विकृत रूप से डार्क साईड के रूप में नहीं बल्कि ब्लैक साईड के रूप में.. यही बाते हैं जो कलम को तोड़ भी देती है और कभी खामोश भी कर देती है, मेरे ही शहर की एक पैनी कलम खामोश है कुछ नहीं हो सकता । इस वाक्यांश ने उनकी कलम को खामोश रखा हुआ है। 40-45 साल से फोटो खींचती व कलम घिसटती एक अन्य कलम लंबे समय से क्षेत्र के लिए लड़ती आ रही है, लेकिन खुद के हाथ खाली हैं अभिनंदन है उन कलम नवीसों का जो ऐसे वातावरण में भी कलम घिसट रहे हैं। यह कालम का उद्देश्य अंधकार पक्ष से रूबरू करवाना है ताकि ग्लेमर्स देख आकर्षित होने वाले समझ सकें है । बावजूद इसके मैने नजर के पीछे का नजरिया लिखा है, लेकिन किसी भी गैरकानूनी कृत्य को सही ठहराना उद्देश्य नहीं है। बस मेरी कलम ने दूसरी कलम का सम्मान करना सीखा है, गलत को सही ठहराना नहीं।
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