आमिर अंसारी
दिल्ली -देश में एक जुलाई से तीन नए आपराधिक कानून लागू होने जा रहे हैं. लेकिन इन कानूनों को लेकर विरोध भी हो रहा है और सुप्रीम कोर्ट में याचिका डालकर एक्सपर्ट कमेटी गठित करने की मांग की गई है.भारत की आपराधिक न्याय प्रणाली में आमूलचूल परिवर्तन करने और पुराने पड़ चुके कानूनों को समाप्त करने के उद्देश्य से 17वीं लोकसभा में पारित तीनों नए आपराधिक कानून भारतीय न्याय संहिता 2023 (बीएनएस), भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता (बीएनएसएस) और भारतीय साक्ष्य अधिनियम 2023 (बीएसए) 1 जुलाई से लागू हो जाएंगे.
लेकिन इन कानून के लागू होने के पहले 27 जून को भारत के सुप्रीम कोर्ट में एक जनहित याचिका दायर कर इनके कार्यान्वयन और संचालन पर रोक लगाने की मांग की गई. याचिका में कोर्ट से इन तीनों कानूनों को लागू करने पर रोक लगाने की मांग की गई. सुप्रीम कोर्ट में अंजले पटेल और छाया मिश्रा ने अपनी याचिका में मांग की है कि तीनों कानूनों को लागू करने से पहले एक एक्सपर्ट कमेटी का गठन किया जाए. इस कमेटी से पहले इसका विस्तृत अध्ययन कराया जाए.
नए कानूनों के खिलाफ याचिका
याचिका में कहा गया है कि तीनों कानूनों को संसद में विस्तृत बहस या ठोस चर्चा के बिना पारित कर दिया गया, उस दौरान विपक्ष के दर्जनों सांसदों को निलंबित कर दिया गया था. याचिका में कहा गया है, "संसद में विधेयकों का पारित होना अनियमित था, क्योंकि कई सांसदों को निलंबित कर दिया गया था. विधेयकों के पारित होने में सदस्यों की भागीदारी बहुत कम थी."
याचिका में तर्क दिया गया कि नए कानून अस्पष्ट हैं, जमानत विरोधी हैं, पुलिस को व्यापक शक्तियां प्रदान करते हैं और यहां तक कि गिरफ्तारी के दौरान हथकड़ी फिर से लगाने जैसे कुछ बिंदुओं पर "अमानवीय" भी हैं. सुप्रीम कोर्ट की वकील अपर्णा भट्ट कहती हैं कि नए कानून की कुछ धाराएं ऐसी हैं जिससे आने वाले समय में समस्याएं पैदा हो सकती हैं. उन्होंने डीडब्ल्यू से कहा कि इन कानूनों की वजह से अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता को लेकर आम लोगों को परेशानी हो सकती है.
भट्ट कहती हैं, "जब आप इतने पुराने कानून को बदलने जा रहे हैं और कानून की कई ऐसी धाराएं हैं जो अब गैरजरूरी हो चुकी हैं तो उन्हें दोबारा से देखा जाना चाहिए था. साथ ही नए अपराध जैसे कि साइबर अपराध के बारे में ज्यादा ध्यान दिया जाना चाहिए क्योंकि इतने सारे साइबर अपराध हो रहे हैं और आम लोग पीड़ित हो रहे हैं."
कितने तैयार हैं पुलिसकर्मी
जानकारों का कहना है कि नए कानूनों को लेकर वकीलों में भी जानकारी की कमी है और उन्हें इन्हें पढ़ने और समझने में समय लगेगा. कानूनी प्रणाली में इस तरह के बड़े बदलाव की तैयारी इस साल की शुरुआत से हो रही है. पुलिसकर्मियों को ट्रेनिंग दी जा रही है और उन्हें नए कानून को लागू करने के लिए तैयार किया जा रहा है.पुलिस विभाग ने पुलिसकर्मियों की ट्रेनिंग के लिए ट्रेनिंग मैटेरियल भी तैयार किया है, जिनमें से कुछ ऑनलाइन उपलब्ध हैं. यह ट्रेनिंग निचले स्तर के पुलिसकर्मी जैसे सब-इंस्पेक्टर और कांस्टेबल के लिए महत्वपूर्ण है, जो पुलिस स्टेशन के संचालन के लिए अहम भूमिका निभाते हैं. उनके सभी काम जैसे प्राथमिकी रिपोर्ट, चार्जशीट और पुलिस डायरी दर्ज करने से लेकर जांच करने तक नए कानूनों द्वारा शासित होंगे.
भट्ट कहती हैं, "नए कानूनों को लेकर कई राज्यों में पुलिस की ट्रेनिंग पूरी भी हो गई है. भले ही मीडिया में ट्रेनिंग के बारे में इतनी रिपोर्टिंग नहीं हुई हो लेकिन ट्रेनिंग हुई है. सबसे पहले पुलिसकर्मियों का ही इन नए कानूनों से सामना होगा क्योंकि अपराध तो होंगे ही और पुलिस को कार्रवाई करनी ही होगी."
नए आपराधिक कानूनों में क्या है
नए आपराधिक कानूनों के प्रमुख प्रावधानों में घटनाओं की ऑनलाइन रिपोर्ट करना, किसी भी पुलिस थाने पर प्राथमिकी यानी जीरो एफआईआर दर्ज करना, प्राथमिकी की बिना शुल्क कॉपी देना, गिरफ्तारी होने पर सूचना देने का अधिकार, गिरफ्तारी की जानकारी प्रदर्शित करना, फॉरेंसिक साक्ष्य संग्रह और वीडियोग्राफी आदि शामिल है.
इसके अलावा पीड़ित महिलाओं और बच्चों के लिए बिना शुल्क चिकित्सा उपचार, इलेक्ट्रॉनिक समन, पीड़िता के महिला मजिस्ट्रेट द्वारा बयान, पुलिस रिपोर्ट और अन्य दस्तावेज उपलब्ध कराना, न्यायालय में सीमित स्थगन, गवाह सुरक्षा योजना, जेंडर समावेश, सारी कार्रवाई इलेक्ट्रॉनिक मोड में होना, बयानों की ऑडियो-वीडियो रिकॉर्डिंग, विशेष परिस्थितियों में पुलिस थाने जाने से छूट भी शामिल हैं
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