Sunday ,19th May 2024

मोदी भक्ति और भाजपा भजन में मग्न समाज ट्रांसजेंडर पर्सन्स बिल 2016 को दिखता ठेंगा ?

किन्नरों को तीसरे लिंग के रूप में पहचान तो मिली लेकिन अभी तक वो अपने अधिकारों से कोसो दूर है आज भी सरकारे हो या समाज सिर्फ महिला और पुरुष की बाते होती है यहाँ तीसरे लिंग को कागज़ो पर कही नहीं गिना जाता है चुनाव में भी आरक्षण सिर्फ महिला सीट और पुरुष सीट का होता है तीसरे लिंग का नहीं ठीक इसी तरह केंद्र और राज्य सरकारों में भर्ती प्रक्रिया हो या स्कूल कालेज में एडमिशन किसी भी फॉर्म में तीसरे लिंग का कोई ज़िक्र नहीं होता ऐसे में कई सवाल भी सरकार उसकी कार्यप्रणाली पर भी खड़े होते है। जिस तरह अन्य सरकार लगातार समाज के हितो के लिए मसौदे तैयार कर बिल पास करती रही है और उन बिलो की योजना और नियम अधिकारियो की कुर्सी के निचे ही सड़ जाते है लेकिन लाभ ठीक उसी तरह मिलता है जैसे प्यासे कौए को मटके की तलहटी में पानी ?

अप्रैल 2014 में भारत की शीर्ष न्यायिक संस्था सुप्रीम कोर्ट ने किन्नरों को तीसरे लिंग के रूप में पहचान दी थी। नेशनल लीगल सर्विसेस अथॉरिटी  की अर्जी पर यह फैसला सुनाया गया था। इस फैसले की ही बदौलत, हर किन्नर को जन्म प्रमाण पत्र, राशन कार्ड, पासपोर्ट और ड्राइविंग लाइसेंस में तीसरे लिंग के तौर पर पहचान हासिल करने का अधिकार मिला। इसका अर्थ यह हुआ कि उन्हें एक–दूसरे से शादी करने और तलाक देने का अधिकार भी मिल गया। वे बच्चों को गोद ले सकते हैं और उन्हें उत्तराधिकार कानून के तहत वारिस होने एवं अन्य अधिकार भी मिल गए यही नहीं इस के बाद भारत विश्व का पहला ऐसा देश भी बन गया जहा किन्नरों को तीसरे लिंग के रूप में पहचान मिली।

कोर्ट के आदेश के बाद सरकार भी इन्हे अधिकार देने में जुट गयी और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की अध्यक्षता में केंद्रीय कैबिनेट ने 19 जुलाई 2016 को ट्रांसजेंडर पर्सन्स (प्रोटेक्शन ऑफ राइट्स) बिल 2016 को मंजूरी  दी। भारत सरकार की कोशिश इस बिल के जरिए एक व्यवस्था लागू करने की थी , जिससे किन्नरों को भी सामाजिक जीवन, शिक्षा और आर्थिक क्षेत्र में आजादी से जीने के अधिकार मिल सके। यह उम्मीद की जा रही थी कि यह विधेयक भारतीय किन्नरों के लिए मददगार साबित होगा। हमारे देश में ऐसे लोगों को सामाजिक कलंक के तौर पर देखा जाता रहा है। इनके लिए काफी कुछ किए जाने की आवश्यकता आज भी है । यह विधेयक भी इसी दिशा में एक प्रयास था । यह भी उम्मीद की जा रही थी कि किन्नरों के साथ अपमानजनक और भेदभाव वाले व्यवहार में कमी लाने में यह विधेयक कामयाब होगा। लेकिन 2022 में भी सरकार खुद अपने इस विधेयक को अमली जमा नहीं पहना पाई।

विधेयक के अनुसार किन्नरों का उत्पीड़न या प्रताड़ित करने पर किसी भी व्यक्ति को 6 महीने की जेल हो सकती है। ऐसे मामलों में अधिकतम सजा कुछ वर्षों की भी हो सकती है। विधेयक के मुताबिक, किन्नरों को ओबीसी (अन्य पिछड़ा वर्ग) में शामिल करने की बात थी । हालांकि, यह तभी लागू होगा, जब वे अनुसूचित जाति या अनुसूचित जनजाति में शामिल नहीं होंगे। यानी यदि वे अजा–अजजा का हिस्सा हैं तो उन्हें उसका ही लाभ मिलता रहेगा।

किन्नरों को तीसरे लिंग के रूप में पहचान के साथ ही सुप्रीम कोर्ट ने साफ तौर पर कहा कि एनएएलएसए का फैसला लेस्बियन, बाईसेक्सुअल्स और गे पर लागू नहीं होगा क्योंकि उन्हें तीसरे लिंग के समुदाय में शामिल नहीं किया जा सकता।

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