Sunday ,19th May 2024

शराब माफिया व अन्य माफियाओ से पत्रकारो को खतरा बढ़ा ?

सर्च स्टोरी मध्यप्रदेश में लगातर शराब माफिया सक्रिय होते जा रहे है और प्रदेश का आबकारी विभाग सत्ता में काबिज़ सरपरसस्तो के दबाव में कोई कार्यवाही नहीं करता मध्यप्रदेश में लगतर इन शराब माफियाओ के निशाने पर पत्रकार है प्रदेश में शराब माफिया के बारे में लगतार पत्रकार खबरों व अन्य माध्यमों से अवगत भी करते है लेकिन माफियाओ का इतना तगड़ा जाल है की डरा धमका कर पत्रकारों को शिकायत वापस लेने मजबूर किया जाता है उत्तर प्रदेश में हाल ही में इन माफियाओ ने एक पत्रकार की जान लेली खतरे के बारे में पुलिस को आगाह करने के अगले ही दिन एक पत्रकार की संदिग्ध हालात में मौत हो गई. पत्रकार की पत्नी ने शिकायत की है कि शराब माफिया से जुड़े लोगों ने ही उनकी हत्या करवाई है. सुलभ श्रीवास्तव उत्तर प्रदेश के प्रतापगढ़ में एक राष्ट्रीय टीवी चैनल के लिए काम करते थे. उन्होंने 12 जून को ही पुलिस विभाग को एक चिट्ठी लिख कर कहा था कि उन्हें शराब माफिया द्वारा उन पर और उनके परिवार के सदस्यों पर हमले का अंदेशा है. उन्होंने प्रयागराज जोन के अपर पुलिस महानिदेशक से उनके और उनके परिवार की सुरक्षा के लिए आदेश देने की अपील भी की थी. लेकिन अगले ही दिन एक हादसे में उनकी मौत हो गई. पुलिस के बयान के मुताबिक सुलभ मोटरसाइकिल से गिर कर घायल हो गए थे और जब तक उन्हें अस्पताल पहुंचाया गया तब तक उनकी मृत्यु हो चुकी थी. हालांकि कुछ मीडिया रिपोर्टों में दावा किया जा रहा है कि उनकी पत्नी की शिकायत और विपक्षी पार्टियों की आलोचना के बाद प्रतापगढ़ पुलिस ने अब जा कर मामले में अज्ञात लोगों के खिलाफ हत्या का मामला दर्ज किया है. उत्तर प्रदेश में अवैध शराब का व्यापार काफी बड़ा है. हाल ही में अलीगढ़ में अवैध देशी शराब पीने के बाद 35 लोगों की मौत हो गई थी. पुलिस को संदेह है कि इलाके में हुई कम से कम 71 और मौतों की वजह भी अवैध शराब ही है, लेकिन इन मौतों की अभी छानबीन चल ही रही है. इसके पहले जनवरी 2021 से ही बुलंदशहर, महोबा, प्रयागराज, फतेहपुर, चित्रकूट, प्रतापगढ़, अयोध्या, हाथरस, आजमगढ़, अंबेडकरनगर आदि जैसे इलाकों से भी अवैध शराब पीकर कई लोगों के मारे जाने की खबरें आ रही थीं. मध्य्प्रदेश में भी लगतर पत्रकारों पर शारब माफियाओ का खतरा मंडरा रहा है स्थानीय पुलिस और प्रशासन ने शराब माफिया के खिलाफ कार्रवाई को लेकर लगतार चुप्पी साढ़े रहता है गौर करने लायक बात है कि पुलिस और प्रशासन सिर्फ राजस्प को लेकर शराब माफिया की जांच ठीक से नहीं करता और माफिया अपने कार्य को अंजाम देते है। उत्तर प्रदेश में हत्या के बाद एक बार फिर भारत में, और विशेष रूप से मध्यप्रदेश में, पत्रकारों के रास्ते में आने वाले बढ़ते जोखिमों को लेकर चर्चा शुरू हो गई है. पिछले वर्ष 2018 में तारीख 26 मार्च, दिन सोमवार, मध्यप्रदेश के भिंड जिले में मोटरसाइकिल सवार पत्रकार संदीप शर्मा को दिन दहाड़े ट्रक कुचल देता है. इसी दिन बिहार के भोजपुर जिले में पत्रकार नवीन निश्चल और उनके साथ विजय सिंह की भी एक वाहन के नीचे आ जाने से मौत हो जाती है. इन दोनों मामलों के अलावा पिछले ३ वर्षो में ऐसे कई मामले हुए हैं जिनमें पत्रकारों की मौत सवाल खड़े करती हैं. इन पत्रकारों पर अधिक जोखिम बड़े शहरों से इतर छोटे शहरों और ग्रामीण इलाकों में पत्रकारों की जान पर अधिक जोखिम है. नेशनल क्राइम रिकॉर्ड ब्यूरों के आंकड़ों मुताबिक साल 2015 से लेकर अब तक करीब दो सैकड़ा पत्रकार हमलों का शिकार हो चुके हैं. वहीं साल 1992 से लेकर 2016 के बीच करीब 70 पत्रकार मारे गए थे. इनमें से अधिकतर स्वतंत्र पत्रकार थे जिनकी हत्या इनके घर या दफ्तर के पास की गई. कई मामलों में पत्रकारों पर होने वाले हमलों की रिपोर्ट इसलिए भी नहीं होती क्योंकि उन्हें स्थानीय नेता, पुलिस या रसूखदार लोगों से धमकियां मिलती हैं. पिछले साल हाईप्रोफाइल पत्रकार गौरी लंकेश की बेंगलूरु में हुई हत्या ने देश में प्रेस की आजादी से जुड़े सवालों को फिर उठा दिया. लंकेश की हत्या पर तमाम बातें और बहसें हुईं लेकिन जमीनी स्तर पर अब तक कुछ नहीं बदला है. इंटरनेट पर भी मीडिया पर अंकुश इंटरनेट और सोशल मीडिया पर भी पत्रकारों की आवाज को दबाने की कोशिश चल रही है. हाल ही में ट्विटर ने कार्टूनिस्ट मंजुल और कई पत्रकारों को पत्र लिख कर बताया कि कंपनी को उनके खिलाफ सरकार से शिकायतें मिली हैं और उनके खातों के खिलाफ कदम उठाने को कहा गया है. इसके बाद मंजुल के कार्टून जिस वेबसाइट पर छप रहे थे उसने उनके साथ अपना अनुबंध खत्म कर लिया. मुंबई प्रेस क्लब जैसे मीडिया संगठनों ने इसकी निंदा की है. इसके बावजूद पत्रकारों पर दबाव कम नहीं हो रहे हैं. अंतर्राष्ट्रीय संस्था रिपोर्टर्स विदाउट बॉर्डर्स ने अपने 2021 के विश्व प्रेस स्वतंत्रता सूचकांक में भारत को उन देशों की सूची में रखा जो पत्रकारिता के लिए "बुरे" हैं और पत्रकारों के लिए दुनिया में सबसे खतरनाक स्थानों में से हैं. 180 देशों के इस सूचकांक में भारत को लगातार दूसरे साल 142वें स्थान पर रखा गया. पड़ोसी देशों में से नेपाल का स्थान था 106 और श्रीलंका का 127.पर है। यही नहीं मिडिया और पत्रकारों पर अंकुश लगाने कई बड़े नेता टीवी चेनलो और अखबारों को आर्थिक मंडी से उबारने अपने व्यापारिक मित्रो से अपने राजनितिक लाभ के लिए फंडिग भी करते है। जिसके चलते पत्रकारिता और पत्रकार अपने मूल उद्देश्य से भी अपना दमन झटकर देते है।

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