Sunday ,19th May 2024

सोशल मीडिया पर विरोध किया तो नहीं मिलेगा पासपोर्ट

ऑनलाइन और ऑफलाइन विरोध प्रदर्शन करने वालों के खिलाफ राज्य सरकारें नए नए हथकंडे अपना रही हैं. सवाल उठ रहे हैं कि क्या विरोध प्रदर्शन करने के लिए सजा देना नागरिकों के मूल अधिकारों का हनन नहीं है? नए कृषि कानूनों के खिलाफ बढ़ रहे प्रदर्शनों के बीच कई राज्यों में प्रदर्शन करने वालों के खिलाफ कई तरह के कदम उठाए जाने की खबरें आ रही हैं. बिहार में राज्य पुलिस ने घोषणा की है कि किसी विरोध-प्रदर्शन में शामिल होने की वजह से अगर किसी व्यक्ति के खिलाफ कोई आपराधिक मामला दर्ज होता है तो और उसका नाम पुलिस के आरोप-पत्र (चार्जशीट) में आता है, तो ऐसे व्यक्ति को ना सरकारी नौकरी मिलेगी न सरकारी ठेका. पुलिस महानिदेशक के आदेश के अनुसार यह सुनिश्चित करने के लिए संबंधित व्यक्ति के चरित्र सत्यापन प्रतिवदेन (कैरेक्टर वेरिफिकेशन रिपोर्ट) में इसकी जानकारी डाली जाएगी. आदेश में नौ ऐसी सेवाओं का जिक्र किया गया है जिनमें इस तरह के पुलिस सत्यापन की जरूरत होती है. इनमें बंदूक लाइसेंस, पासपोर्ट, अनुबंध यानी कॉन्ट्रैक्ट पर मिलने वाली सरकारी नौकरियां, सरकारी ठेके, गैस एजेंसी और पेट्रोल पंप के लाइसेंस, सरकारी सहायता या अनुदान, बैंकों से लोन आदि शामिल हैं. बिहार पुलिस पहले ही ट्विटर, फेसबुक जैसे मंचों पर सरकार की आलोचना करने वालों के खिलाफ साइबर क्राइम के आरोप में कार्रवाई करने की घोषणा कर चुकी है. अब उत्तराखंड सरकार भी ऐसा ही कुछ करने की योजना बना रही है. राज्य के पुलिस महानिदेशक ने कहा है कि सोशल मीडिया पर "एंटी नैशनल" और "एंटी सोशल" टिप्पणी लिखने वालों का रिकॉर्ड रखा जाएगा और इसकी जानकारी उनकी पुलिस सत्यापन रिपोर्ट में शामिल की जाएगी. इसका असर यह होगा कि पासपोर्ट या अन्य सरकारी सेवाओं में जब ऐसे लोग आवेदन करेंगे तो उनका रिकॉर्ड खराब होगा और उनका आवेदन मंजूर होने की संभावना काम हो जाएगी. पुलिस महानिदेशक अशोक कुमार ने मीडिया को दिए एक साक्षात्कार में बताया कि ऐसी टिप्पणी करने वालों को पहली बार तो समझाया जाएगा लेकिन अगर व्यक्ति ने दोबारा ऐसा किया तो उनके रिकॉर्ड में यह सब डाल दिया जाएगा. इन दोनों कदमों को अभिव्यक्ति की आजादी पर हमले के रूप में देखा जा रहा है. बिहार पुलिस के आदेश पर ट्वीट करते हुए विधान सभा में विपक्ष के नेता तेजस्वी यादव ने इसे तानाशाही बताया. सुप्रीम कोर्ट में वकालत करने वाले अधिवक्ता प्रशांत भूषण ने इसे इसे नाजी जर्मनी जैसे पुलिस स्टेट द्वारा उठाया गया कदम बताया. यह सभी आदेश ऐसे समय पर आए हैं जब दिल्ली, उतर प्रदेश और मध्य प्रदेश में पुलिस ने 26 जनवरी को किसान परेड के दौरान हुई घटनाओं के लिए उन घटनाओं के बारे में ट्वीट करने वालों को भी जिम्मेदार ठहराया है. पहले तो केंद्र सरकार की शिकायत पर ट्विट्टर ने ऐसे कई खातों को ब्लॉक कर दिया था लेकिन जब कंपनी ने उन्हें बहाल कर दिया तो सरकार ने इसके लिए ट्विटर के खिलाफ ही कार्रवाई की चेतावनी दे दी. सांसद पहुंचे गाजीपुर बॉर्डर इस बीच गुरुवार सुबह विपक्ष के सांसदों का एक समूह दिल्ली के गाजीपुर बॉर्डर पर स्थिति का जायजा लेने पहुंच गया. यह दिल्ली की उन सीमाओं में से एक है जहां पिछले दो महीनों से किसान नए कृषि कानूनों के खिलाफ धरने पर बैठे हुए हैं. पिछले कुछ दिनों में पुलिस ने धरना स्थल के इर्द-गिर्द लोहे और कंक्रीट के बैरियर, कंटीली तारें और लोहे की बड़ी बड़ी कीलें लगा कर इलाके की घेराबंदी कर दी है. 10 पार्टियों के 15 सांसदों के इस समूह को बॉर्डर से पहले ही पुलिस ने रोक दिया. इन सांसदों में एनसीपी नेता सुप्रिया सुले, अकाली दल नेता हरसिमरत कौर बादल, टीएमसी नेता सौगात रॉय, डीएमके नेता कनिमोई और अन्य नेता शामिल थे. अमेरिका का सरकार और किसानों दोनों को समर्थन इस बीच अमेरिकी सरकार ने एक बयान में शांतिपूर्ण प्रदर्शन और बाजार की कार्यकुशलता में सुधार लाने की कोशिशों दोनों का समर्थन किया है. अमेरिकी गृह मंत्रालय के एक प्रवक्ता ने कहा, "आम तौर पर, अमेरिका भारत के बाजारों की कार्यकुशलता को सुधारने वाले और ज्यादा निजी निवेश को आकर्षित करने वाले कदमों का स्वागत करता है". प्रवक्ता ने यह भी कहा, "हम यह मानते हैं कि शांतिपूर्ण विरोध किसी भी फलते-फूलते लोकतंत्र की विशेषता हैं." बुधवार को अमेरिकी अधिवक्ता और उप-राष्ट्रपति कमला हैरिस की भांजी मीना हैरिस ने किसानों के आंदोलन का समर्थन किया था.

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