Sunday ,19th May 2024

फक्क्ड़ पत्रकार की पत्रकारिता का 22 सालो का फक्क्ड़ पन

फक्क्ड़ पत्रकार की पत्रकारिता का 22 सालो का फक्क्ड़ पन 

लेख - संजना प्रियानी

मध्यप्रदेश की पत्रकारिता की बात की जाये तो एक मस्त मौला पत्रकार का नाम आखिर आपकी जुबान पर भी आ जायेगा अपनी मस्ती में मस्त रहने वाला एक ऐसा कलम का धनि जिसे लोग झोला छाप ख़बरी  के नाम से भी जानते है। इस की कलम निडर और सहास  से  भरी हुई है। न सत्ता का डर ना अधिकारी की गुलामी ऐसा हरफन मौला। इन्हे देखकर कबीर का एक दोहा याद आता है। 

“कबीरा खड़ा बाजार में लिए लुकाठी हाथ, 
जो घर फूंके आपना चले हमारे साथ।’

वैसे पत्रकारिता एक  सार्वजनिक दायित्व से परिपूर्ण एक प्रकृष्ट कला है जैसा कि कार्लांइन ने कहा है कि ‘महान है पत्रकारिता, लोकमानस को प्रभावित करने वाला होने के कारण पत्रकार क्या विश्व का शासक नहीं ? वास्तव में रोचक एवं चुनौतीपूर्ण इस पेशे में वही सक्षम सिद्ध होगा जिसमें कवि की कल्पना शक्ति, कलाकार की सृजनात्मक योग्यता, न्यायाधीश की विषयनिष्ठा, वैज्ञानिक की सुस्पष्टता और कम्प्यूटर मशीन की गति हो.’ राजेंद्र सिंह जादौन पत्रकारिता के इन सभी गुणों से परिपूर्ण हैं. साथ ही एक बहतरीन छाया चित्र कार है मध्यप्रदेश के इस यशस्वी पत्रकार की पत्रकारिता ने हिंदी पत्र-साहित्य के साथ कला जगत में भी लोकप्रियता का अभूतपूर्व मानदंड स्थापित किया है.

उनके द्वारा सामाजिक, राजनीतिक, साहित्यिक एवं अन्य विषयों पर लिखे गए लेख पढ़ने पर ऐसा लगता है मनो आँखों देखा हाल हो  इस पत्रकार की उम्र अभी कम है, पर उम्र का कोई सीधा संबंध किसी क्षेत्र में उसके द्वारा किए गए उत्कृष्ट कार्यों से नहीं होता है. कई साहित्यकार-पत्रकार शतायु हुए, पर जरूरी नहीं है कि उनके द्वारा किए गए कार्य भी उत्कृष्ट हो. हिंदी में ही भारतेंदु ने सिर्फ पैंतीस साल की उम्र पायी थी लेकिन उन्‍होंने साहित्य में इतना काम कर दिया कि कई साहित्यकार सौ वर्षों में भी नहीं कर पाए. वे अल्पायु के बावजूद हिंदी साहित्य के युग-निर्माता बने. उनके नाम पर हिंदी साहित्य में एक कालखंड का नामकरण किया गया है.

ख्यातिलब्ध पत्रकार राजेंद्र सिंह जादौन  का जन्म 17 जून , 1982 को हुआ। उनका पैतृक गाँव मध्यप्रदेश के शाजापुर जिले का बोलाई  है. बोलाई  गाँव जादौन राजपूतो की गाढ़ी है । किंतु राजेंद्र सिंह जादौन का बचपन अपने पैतृक गाँव बोलाई में नहीं बीता. वे ननिहाल  में पाले-पोसे गए. उनका ननिहाल शाजापुर है.

उनकी प्रारंभिक शिक्षा शाजापुर जिले के स्वरस्वती शिशु मंदिर में हुई. बाद में वे भोपाल आगये और भोपाल के सरकारी स्कूल  में पढ़े मुझे अचम्भा होता है की सरकारी स्कूल इतने उर्वर मस्तिष्क को पैदा कर सकते हैं, सहसा विश्वास नहीं होता, कारण कि राजेंद्र सिंह जादौन  की पैनी दृष्टि एक्स-रे मशीन की भाँति किसी तथ्य को आरपार देख लेती है. सामान्य लोगों में वह दृष्टि नहीं होती है, जो इनके पास है. उनक लेख इतने विचारोत्तेजक एवं मौलिक होते हैं कि आश्चर्य होता है कि क्या मानव-मस्तिष्क इतने गहरे में जाकर सोच सकता है. जादौन अत्यंत स्वाभिमानी पत्रकार हैं. इतनी कम उम्र में ही उन्होंने अनेक पत्र-पत्रिकाओं का संपादन किया. उनका संपादन-स्थल भी भोपाल के विभिन्न कोनों में रहा. शायद ऐसे भी स्वाभिमानी पत्रकार खूँटे में बंधकर रह भी नहीं सकते. वे निरंतर अपना कार्य-स्थल बदलते रहे मानो वे किसी ऐसे मुकाम की खोज में हों जहाँ से समाज  की लड़ाई लड़ी जा सके. राजेंद्र सिंह जादौन “ सर्च स्टोरी “ के प्रधान सम्पादक हैं साथ ही टीवी 24 व लाइव टुडे न्यूज़ चैनल के स्टेट हैड मध्यप्रदेश /छत्तीसगढ़  का दाईत्व  भी  निभा रहे है। इसके सात  दैनिक अख़बार , पत्रिका एवं वेब और मोबिल टीवी  के माध्यम से समाज  के हित में लगातार लड़ाई लड़ रहे हैं.

जैसा कि हम कह आए हैं कि जादौन कई अखबारों से जुड़े,  हटे और फिर नए-नए से जुड़ते गए. उन्होंने भोपाल से प्रकाशित  सांध्य दैनिक ‘जन सत्य ’ में बतौर संपादक कार्य किया. इस अखबार का ‘साहित्यिक विमर्श परिशिष्ट’ जादौन  के संपादकत्व में काफी ख्यात रहा. इसके बाद उन्होंने टाइम्स टीवी नेटवर्क  में बतौर संवाददाता काम किया ,पर जादौन  ऊंचाई तक पहोचना चाहते थे मन नहीं लगा. वो पत्रकारिता को निचले स्तर से समझना चाहते थे सो वे उस के बाद . छाया कर के रूपमे कार्य करने लगे 4 वर्षो तक लगातर छाया चित्र पत्रकार के रूपमे कई समाचार पत्र पत्रिका में अपनी सेवा प्रदान की इसके बाद यूसीएन केबल नेटवर्क में बतौर समूह सम्पदाक के पद पर राजधानी भोपाल में कार्य किया पर पत्रकार तो स्वतंत्रता का आकांक्षी होता है. उसे उन्मुक्तता की तलाश रहती है. खास तौर से जादौन  जैसे स्वाभिमानी पत्रकारों की तो यह नियति है. इस के बाद उन्होंने अपनी खुद की पत्रिका सर्च स्टोरी सुरु की उनका मन्ना था की अगर लड़ाई में उतरो तो बन्दुक अपने कंधे पर रख कर चलानी चाहिए ताकि निशान न चुके। मध्यप्रदेश के कई जिलों की जीवंत चित्रांकन पर उन्होंने काफी लिखा  है. निश्चय ही वे विभिन्न विधाओं और विषयों के पत्रकार हैं. उन्होंने सत्ता से हमेशा अपने को दूर रखा. सत्ता जहाँ भी गलत करती है, पत्रकार राजेंद्र सिंह जादौन  उसका विरोध करते हैं. वे सौ प्रतिशत बेफिक्र पत्रकार हैं. सत्ताधीशों की लाठी का डर उन्हें नहीं सताता है. वे चिंता भी नहीं करते हैं कि कोई बेईमान सत्ताधीश मुझे बिगाड़ लेगा. पत्रकारिता का जोखिम उठाना उनकी प्रकृति और नियति है. गलत कार्यों का वे पर्दाफाश करनेवाले पत्रकार हैं. एकदम निडर और बेखौफ. कभी-कभी उनकी तल्ख टिप्पणियाँ बड़ों-बड़ों को तिलमिला देती हैं.

इस पत्रकार की कलम में जितनी ताकत है, उतनी ही ताकत उनके छायांकन में भी है. वे आंदोलनकारी भी हैं. सचमुच पत्रकार राजेंद्र सिंह जादौन  का कार्य कला , साहित्य, संस्कृति और राजनीति के लिए अत्यंत महत्वपूर्ण है. वे शोषित, तथा पिछड़ों की बुलन्द आवाज हैं तथा मध्यप्रदेश की बेजुबान वंचित जनता की जुबान हैं.
उनके स्वाभाव और बुलंद आवाज के आज भी लाखो दीवाने है और उनकी कलात्मक फोटो ग्राफ़ी के प्रेमी भी काम नहीं ऐसे फक्कड़ मस्त मौला पत्रकार की आज के समाज को ज्यादा जरुरत है। ऐसे लोग ही भविष्य में इतिहास रचते है और इतिहास का हिस्सा होते इन्हे। 

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