Sunday ,19th May 2024

मौजूदा राजनीतिक माहौल में नोवेल ‘सत्ता परिवर्तन’ के जरिये पब्लिक का ‘हंगामा’ खड़ा करने की कोशिश

‘हिंद युग्म’ से पब्लिश नोवेल पर बन चुकी है फिल्म, जो नोटबंदी के कारण रिलीज नहीं हो पाई

 

मौजूदा राजनीतिक माहौल में नोवेल ‘सत्ता परिवर्तन’ के जरिये पब्लिक का ‘हंगामा’ खड़ा करने की कोशिश

-----------

नोटबंदी ने फिल्म बंद कराई, तो सामने आया नोवेल ‘सत्ता परिवर्तन’ के जरिये पब्लिक का आक्रोश

------------

 आखिर नोवेल सत्ता परिवर्तन के पीछे पॉलिटिक्स क्या है?

 

दुष्यंत कुमार की गजल है-‘सिर्फ हंगामा खड़ा करना मेरा मकसद नहीं/ मेरी कोशिश है कि ये सूरत बदलनी चाहिए!’ लेकिन इसी अंदाज-तर्ज पर सामने आया नोवेल ‘सत्ता परिवर्तन’ हंगामा बरपा सकता है। इस समय देश ‘राजनीतिक संक्रमण’ से गुजर रहा है, यह नोवेल पब्लिक के गुस्से को जगा सकता है। सियासत और अपराध के गठबंधन की सनसनीखेज कहानी बयां करते नोवेल की पृष्ठभूमि सच्ची घटनाओं के इर्द-गिर्द घूमती है, जिसमें युवा आंदोलन केंद्र में है।

 

नोवेल ‘हिंद युग्म, नई दिल्ली’ ने पब्लिक किया है, जिसे ‘अमेजॉन’ भी प्रमोट कर रहा है। जर्नलिस्ट अमिताभ बुधौलिया का यह पहला उपन्यास है। इसी कहानी पर और इसी टाइटल से एक फिल्म भी बनाई गई थी। लेकिन नोटबंदी के चलते खड़े हुए आर्थिक संकट के कारण फिल्म रिलीज नहीं हो पाई। इस फिल्म को लेकर मीडिया में कुछ कंट्रोवर्सी भी सामने आई थीं।

दरअसल, कहानी का मुख्य किरदार एक बाहुबली एमएलए है, जिसका नाम भैया राजा है। यह किरदार यूपी के बाहुबली नेता रघुराजप्रताप सिंह उर्फ भैया राजा से मिलता-जुलता है। फिल्म में यह किरदार चर्चित अभिनेता पीयूष सुहाने ने निभाया था, जो हूबहू भैया राजा की तरह दिखते हैं। हालांकि लेखक इसे महज संयोग मानते हैं।

वे सफाई देते हैं,’ नि:संदेह नोवेल सत्ता में बैठे चंद नेताओं की वजह से बदनामी झेल रही सियासत की सच्चाई बयां करता है, लेकिन यह महज संयोग है कि इसके किरदार असली जिंदगी में किसी से मेल-मिलाप खाते हों। हर लेखक की अपनी सोच होती है। मेरा उद्देश्य भी अपनी लेखनी से देश-समाज की बुराइयों के प्रति जनमानस को खड़ा करना है, उनका आक्रोश जगाना है। खासकर, युवा-शक्ति को जागृत करना है, लेकिन मकसद सत्ता विरोधी कतई नहीं है। हां, सत्ता में बैठे चंद ऐसे लोगों के खिलाफ आंदोलन खड़ा करना अवश्य है, जो अपने स्वार्थ में देश को खा रहे, जनता को बरगला रहे। भुखमरी, गरीबी, बेरोजगारी, भ्रष्टाचार, नक्सलवाद-आतंवाद जैसी समस्याओं को खत्म नहीं होने दे रहे।’

 

नोवेल पर साहित्य और फिल्म जगत से जुड़ीं कई शख्सियतों ने अपने कमेंट्स दिए हैं। कहानीकार तेजेंद्र शर्मा लिखते हैं-‘यह नोवेल राजनीति में पैसा और पावर के दुरुपयोग को पठनीयता के साथ प्रस्तुत करता है।’

गैंग आफ वासेपुर, स्त्री और मिर्जापुर जैसी फिल्मों से चर्चाओं में आए एक्टर पंकज त्रिपाठी ने लिखा-‘’यह नोवेल देश

की सियासी और सामाजिक सच्चाई को सामने लाता है।

जाने-माने जर्नलिस्ट निधीश त्यागी लिखते हैं-‘’नोवेल की संवाद शैली और दृश्य सिनेमाई करिश्मा पैदा करते हैं।

बवंडर, वेलडन अब्बा, वेलकम टू सज्जनपुर जैसी फिल्में लिखने वाले अशोक मिश्र लिखते हैं-‘इसका हरेक कैरेक्टर राजनीति में घुसपैठ कर चुकी बुराइयों पर तीखा व्यंग्य करता है।’

काइट्स, काबिल, बाजीराव मस्तानी जैसी फिल्मों के गीतकार नासिर फराज ने लिखा-‘नोवेल रीडर्स के मन-मस्तिष्क को झकझोरता है।’

 कवि एहसान कुरैशी लिखते हैं-‘पढ़कर यूं लगा, मानों सबकुछ हमारे आसपास घटित होता रहा है।’

मशहूर फिल्म एक्शन डायरेक्टर शाम कौशल ने लिखा-‘नोवेल सिनेमाई नजरिये से रचा गया है, ताकि एक-एक दृश्य सजीव दिखें।’

 जाने-माने कहानीकार राजनारायण बोहरे लिखते हैं-‘शैली युवा पाठकों को ध्यान में रखकर गढ़ी गई है।’

नोवेल की कहानी एक सरकारी कॉलेज की जमीन पर षड्यंत्रपूर्वक मॉल बनाने से शुरू होती है। कॉलेज स्टूडेंट्स का एक ग्रुप इसका कड़ा विरोध करता है, तो भैया राजा साजिशन उन्हें नक्सलवादी घोषित करा देता है।

नोवेल सस्पेंस, थ्रिल और एक्शन से भरपूर है।

लेखक ने कहा-‘दरअसल, हमने सबसे पहले इसकी फिल्म स्क्रिप्ट तैयार की थी। बाद में उसे नोवेल में रूपांतरित किया। इस कहानी को लेकर कुछ फिल्ममेकर्स ने दिलचस्पी दिखाई है।’

 

film clip
https://www.youtube.com/watch?v=a2rGu_FEiGM

Comments 0

Comment Now


Total Hits : 278011