Sunday ,19th May 2024

70 सालों में भारत की नारी को जीवन के प्रत्येक क्षेत्र में सुनिश्चित मौलिक अवसर और अधिकार

समाजिक न्याय के पैमाने पर आखिर कहाँ मिले है आज़ादी के 70 सालों में भारत की नारी को जीवन के प्रत्येक क्षेत्र में सुनिश्चित मौलिक अवसर और अधिकार - क्रन्तिकारी
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जिस भारत में भारतीय संस्कृति के अनुसार नारी को देबतायों द्वारा पूजनीय बताया गया है .और नारी के सहयोग के बिना इंसान की उत्तपत्ति सम्भव नहीं है .जब तक इंसान नहीं होगा तब तक ,परिवार ,समाज की कल्पना करना व्यर्थ है .जीवन के प्रत्येक क्षेत्र में आवरण सहयोग और समर्पित नारी के आवरण संघर्ष को हाशिये पर धकेलते हुए पुरुषप्रधान भारत के पुरुष की निजि स्वार्थी ,अवसर और कटटर पुरुषप्रधान चेतना ,चरित्र और आचरण के चलते आज़ादी के 70 साल के बाद भी नारी को सामाजिक न्याय की दृष्टि के जीवन के प्रत्येक क्षेत्र में शोषित ,उपेक्षित ,उत्पीड़ित और बंचित रखा गया है . क्या पुरुष प्रधान निति ,नियत और नेतत्व भारत के सामाजिक न्याय का उपहास नहीं है ?. जब सभी कहते ,सुनते और मानते है कि नारी के सहयोग के बिना पुरुष का जीवन और असितत्व कतई सम्भव नहीं है तो फिर सामाजिक न्याय के पैमाने पर आखिर कहाँ मिले है आज़ादी के इन 70 सालों में नारी को जीवन के प्रत्येक क्षेत्र में उसको उसके मौलिक अवसर और अधिकार ?. उक्त विचार जागरूक समाज दल के संस्थापक & राष्ट्रीय अध्यक्ष क्रन्तिकारी गौरव सिंह कुशवाहा ने आज आगरा में पत्रकारों से बातचीत के दौरान व्यक्त किये .
                                           जसद के राष्ट्रीय अध्यक्ष क्रन्तिकारी ने कहा है कि आज कल सम्पूर्ण भारत में नारी शक्ति की पूजा नवरात्रि के रूप में पुरुष कर रहा है तो दूसरी तरफ यही पुरुष पुरुषप्रधान चेतना ,चरित्र और आचरण के चलते नारी को शिक्षित ,प्रशिक्षित ,सर्वसमृद्ध ,सशक्त होते हुए देखना भी पसन्द नहीं करता है .जबकि कटु सत्य यह है कि जिस परिवार की नारी शिक्षित ,प्रशिक्षित ,सर्वसमृद्ध , सशक्त ,सुरक्षित और सम्मानित होगी बो परिवार ,समाज और देश सर्वसमृद्ध ,सशक्त ,सुरक्षित सम्मानित होगा .आज नारी को जीवन के प्रत्येक क्षेत्र में जरूरत और जनसंख्या के अनुपात में सुनिश्चित भागेदारी देकर परिवार ,समाज और देश को उन्नति के उच्च शिखर के साथ कामियाबी की बुलन्दगियों पर पहुँचने की अति अनिवार्य जरूरत है .
 

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