Sunday ,19th May 2024

बुनियादी सिद्धांतों और मूल्यों को कुचलने का सिलसिला मध्य प्रदेश में जारी .............

 

राजेन्द्र सिंह जादौन

सर्च स्टोरी

प्रदेश में लोकतंत्र के बुनियादी सिद्धांतों और मूल्यों को कुचलने का सिलसिला जारी है. और इसमें अब सेना और पुलिस बढ़-चढ़कर हिस्सा ले रही है.
मंदसोर में  किसनो से बचने के लिए पुलिस की एक टुकड़ी के ने यह तय किया कि अन्दाता  गोली मारी जाये बाद में केन्द्र सरकार से लेकर आला अफसरों तक में हड़कं मच गया  और आनन फानन में मुख्य मंत्री ने 1 करोड़ मुवावजा देने की घोषणा करदी बात यहीं पर अगर खत्म हो जाती तो भी एक बार लोग इसे भूलने की कोशिश करते. लेकिन प्रदेश सरकार और पुलिस मानो किसानो  के जख्मों को कुरेदने और भारत सहित बाकी दुनिया के मानवाधिकारवादियों के मुंह पर जूता मारने पर आमादा है.
वाही  मत्री भूपेंद्र सिंह का एक बयान सामने आया जिसमे उन्होंने कहा की गोली पुलिस ने नहीं उग्रवादीयो ने चलाई है , मत्री भूपेंद्र सिंह का यह बयान एकदम भयानक और अलोकतांत्रिक है. देश के भीतर अपने ही नागरिकों पर, चाहे वे पत्थर ही क्यों न चला रहे हों, उन पर गोली चलाने की हसरत और नीयत की ऐसी घोषणा करना देश की लोकतांत्रिक परंपराओं के ठीक खिलाफ है. किसी भी लोकतांत्रिक देश में सरकार की नीयत भला अपने लोगों पर गोली चलाने की कैसे हो सकती है? और देश के भीतर जन सेवा की बात करने वाली पुलिस  की तैनाती का मतलब यही होता है कि देश और प्रदेश की सरकारें अपने काम में नाकामयाब रही हैं, और पुलिस तथा सुरक्षा बल मिलकर जब हालात पर काबू नहीं कर पा सके , पुलिस  के किसी इलाके में आने का यह मतलब कहीं भी नहीं होता कि पुलिस अपने लोगों पर गोली चलाने की चाहत रखे, खासकर अन्दातो पर,.........

 प्रदर्शन कर रहे लोगों के लिए यह कहना कि बेहतर होता कि वे गोली चलाते ताकि पुलिस भी वह कर सकती जो कि वह करना चाहती है.
आज भारत के माहौल में किसानो के ऊपर हुए इस  कार्रवाई को, उसकी किसी भी कार्रवाई को, उसकी कैसी भी कार्रवाई को राष्ट्रप्रेम से जोड़कर उसे सही ठहराने का जो आक्रामक राष्ट्रवाद चल रहा है.
उससे दुनिया के किसी और देश का कोई नुकसान नहीं हो रहा, उससे भारत के पड़ोस में बसे हुए, और दुश्मन समझे और कहे जाने वाले देश का भी कोई नुकसान नहीं हो रहा, इस आक्रामकता से देश का खुद का नुकसान हो रहा है, और देश के भीतर जो लोग ऐसी आक्रामकता से असहमत हैं, उन्हें गद्दार ठहराकर जा रहा है.
 उधर प्रदेश के मुख्य मंत्री इन मौतों को 1 करोड़ का मरहम लगा रहे है क्या एक जान की कीमत पेसो से आकी  जा सकती है वो भी तब जब लोग अपने अधि करो के लिए सड़को पर उतरे हो.. अब तक कॉलेज और यूनिवर्सिटी को राजनीति से और आक्रामक राष्ट्रवाद से परे रखा जाता था. 
लेकिन अब उन्हें भी इसमें शामिल किया जा रहा है, और दिलचस्प बात यह है कि आज देश में दर्जनों अलग-अलग जलते-सुलगते मुद्दे हैं, जिनमें से एक का भी राष्ट्रवाद से, या कि किसी दुश्मन देश से कुछ भी लेना-देना नहीं है, और वे तमाम भारत के अपने घरेलू मुद्दे हैं. ऐसे में इन तमाम बातों को छोड़कर नए-नए भावनात्मक विवादों को छेड़ना देश के लिए प्रतिउत्पादक काम है जिससे नुकसान छोड़ और कुछ नहीं होने वाला है.
कोई भी देश महज अपने एक झूठे इतिहास के मौजूदा पाखंडी गौरव को खड़ा करके आगे नहीं बढ़ सकता. ऐसे सम्मोहन में देश की आबादी को डुबोया तो जा सकता है, लेकिन उसे तैराया नहीं जा सकता. ऐसे तमाम अलोकतांत्रिक और गैरजरूरी मुद्दों से देश की आबादी के एक बहुत बड़े हिस्से को भीड़ की मानसिकता में लाकर उसे एक चुनावी ध्रुवीकरण का शिकार तो बनाया जा सकता है, लेकिन देश की अर्थव्यवस्था और देश का विकास इससे चौपट हो रहे हैं. हम आखिर में एक बार फिर पुलिस  के इस रुख को, और इस रुख के तरफ सरकार के रुख को लोकतंत्र के लिए बहुत खतरनाक मानते हैं, और इसकी तारीफ महज वे लोग कर सकते हैं जिनके अपने इलाके में कभी कोई गोलीकांड नहीं हुआ या जो कभी अपने अधिकारों के लिए नहीं लडे. हिन्दुस्तान में जिन इलाकों में इस तरह की कार्य वाही को अंजाम दिया जाता है  वहां के लोग ऐसा नहीं सोचेंगे कि प्रदर्शन की जगह भीड़ गोलियां चलाती तो अच्छा होता, क्योंकि जवाब में पुलिस को भी गोलियां चलाने मिलतीं. और अधिकारों के लिए लड़ने वाले ख़त्म होते चले जाते ....और सरकार इन के मुह बंद कर जूता मारती .........

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