Sunday ,19th May 2024

मोहन और नरेन्द्र यादों में भविष्य के लाइट हाउस बने रोशनी देते रहेंगे

अद्भुत विचारक राममनोहर लोहिया ने एक बात कही कि व्यक्ति का हो न हो, इतिहास का पुनर्जन्म होता है. आज होते तो उलटबांसी देखते. इतिहास का नहीं व्यक्तिवाचक नाम का पुनर्जन्म हुआ है. वह प्रतिइतिहास है. दो सत्ता शिखर पुरुष मोहन भागवत और नरेन्द्र मोदी के नामों के दोहराव के पहले मोहन हुए मोहनदास करमचंद गांधी. पहले नरेन्द्र विवेकानंद में तब्दील हुए. विवेकानंद और गांधी का यश और इतिहास पर कायम रहने का दबाव स्थायी है. वक्त और मूल्य चाहे जितने बदलें. पहले मोहन और नरेन्द्र यादों में भविष्य के लाइट हाउस बने रोशनी देते रहेंगे.  देश को रचने की राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की स्वरचित दृष्टि है. मोहन भागवत संघ परंपरा के झंडाबरदार हैं. संघ का निश्चय है भारत हिन्दू राष्ट्र बनेगा. हिन्दू, हिन्दुइज्म, हिन्दुत्व, हिन्दुस्तान, हिन्दूवादी शब्दों का खेल लेखक और मीडियाकर्मी उनके लिए करते हैं.

सुप्रीम कोर्ट भी इस भूलभुलैया से अछूता नहीं होता. हिन्दू शब्द देश को अखंड रखने के काम में लगाया जाता है और नहीं भी लगता. हिन्दूवादी वर्णाश्रम में विश्वास रखते हैं. उसकी आड़ में जातिवादी ढकोसला डैने पसारता देश में जहर भरता है. नये मोहन और नये नरेंद्र के भाषणों, इंटरव्यू और लेखन में जातिवादी बुराइयों के खिलाफ लड़ने का जेहाद कम दिखाई देता है. सामाजिक समरसता की चूलें हिल रही हैं. वर्णाश्रम का मुकम्मिल निषेध और तिरस्कार तो विवेकानंद और गांधी ने भी नहीं किया. तब भारत में शिक्षा का प्रसार बहुत कम था. अंगरेजियत ने भारतीय परंपराओं का मखौल उड़ाना सिखाना शुरू कर दिया था.
 विवेकानंद के भारतीय समझ में सबको शामिल करने के नायाब तर्क के अनुसार भारत में सभी धर्मों ईसाई, मुस्लिम, यहूदी, पारसी और तमाम धर्मकुलों को पनाह दी गई. शरणार्थी बनकर आने वालों को भी भारतीय संस्कृति और तहजीब ने अपना लिया. वे भारत में अधिकार के साथ रहते और संघर्ष भी करते हैं. विवेकानंद वेदान्त और इस्लामी सभ्यता का यौगिक बनाना चाहते थे.
सर्वजन उपलब्ध सड़क आंदोलन के नेता गांधी ने आश्रम की प्रार्थनाओं में ईश्वर, अल्लाह दोनों को सांस की एक ही तरन्नुम में मिला लिया. पुराने नरेन्द्र और मोहन हिन्दुस्तानी समझ की दो आंखें हैं जिनसे एक ही दृष्टि झरती है.
 नए नरेन्द्र और मोहन भी दो अलग-अलग आंखें लगते एक ही नजर से देश को देख रहे हैं. आदिवासी, दलित तथा पिछड़े वर्ग के आरक्षण से समाज में उथलपुथल हुई. वैसी अन्य किसी घटना से नहीं हुई.

मंडल कमीशन की सिफारिशों को लागू कर प्रधानमंत्री विश्वनाथ प्रताप सिंह नियामक राजनेताओं की श्रेणी में प्रोन्नत हो गए. बिहार चुनाव के पहले मोहन भागवत और उत्तरप्रदेश विधानसभा चुनाव के पहले मनमोहन वैद्य ने संघ प्रतिनिधियों की हैसियत में आरक्षण पर पुनर्विचार की अजान दी.
अपील उच्च वर्गों के जेहन में तीर की तरह पैठी. ये वर्ग उच्चता में आत्ममुग्ध और गाफिल हैं. नरेन्द्र मोदी ने लीपापोती करने की राजनीतिक कोशिश की. बिहार में खमियाजा उठाना पड़ा. उत्तरप्रदेश में बोनस मिला. सामाजिक कुलीनता की खलनायकी को लगातार सत्तानशीन होने का मौका मिलता है.
ब्राह्मणों, क्षत्रियों और वैष्यों के पास अधिकांश दौलत और राजनीतिक सत्ता है. पुराने मोहन वैश्य परिवार के दीवान के बेटे फकीर हो गए कि कपड़े तक उतार दिए. पुराने नरेन्द्र अमीर वकील विश्वनाथ दत्त के बेटे में साधुत्व भर गया.

मां और बहन की फाकामस्ती दूर करने भोजन तक का इंतजाम नहीं कर पाए. पानी पीकर जिए लेकिन मकसद हासिल किया. दोनों पूर्वज हिन्दुतान की आवाज, सांस और सुगंधि बन गए. हिन्दुत्व शब्द पर संघ का नहीं विनायक दामोदर सावरकर का पेटेन्ट है. आजादी की लड़ाई में हिन्दू महासभा ने मुखालफत की. फिर भी श्यामाप्रसाद मुखर्जी और संघ के गोलवलकर बड़े नेता बनकर उभरे. नए नरेन्द्र और मोहन की अगुवाई में देश का बड़ा धड़ा पंथनिरपेक्षता का मजाक उड़ाता है. शासकीय पंथनिरपेक्षता और सामाजिक धर्मसहजता भारत का चरित्र है.
सम्प्रदायवादी तिलिस्म में नतोदर या उन्नतोदर शीषे के सामने खड़ा कर दिया जाने से चेहरा वहशी और उपहास योग्य दिखाई देता है. नए नरेन्द्र को फख्र है कि विवेकानंद के नरेन्द्र नाम का पुनरावतार हैं. रामकृष्ण मिशन की शिक्षाओं का सेक्युलर यश उनके खाते में नहीं आया. एक वाक्य बेचा जाता है कि विवेकानंद ने कहा था 'गर्व से कहो मैं हिन्दू हूं.'
इसके आगे विवेकानंद ने यह भी कहा था कि कहो दलितों, आदिवासियों, गरीबों, मुफलिसों, चांडालों, भिक्षुओं, बीमारों और अकिंचन हिन्दुओं के साथ हिन्दू हैं. नए नरेन्द्र और मोहन ऐसी सभाओं में नहीं जाते जहां गंदगी, बदबू, गरीबी, प्रदूषण वगैरह की बयार बह रही है. पांच सात सितारा होटलों और एयरकंडीशन्ड इंद्रधनुषी विदेशी सभागृहों में मुखातिब होते हैं. नए मोहन अचानक पढ़ाने के शौकीन हो गए हैं.

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