Sunday ,19th May 2024

जश्न के बीच शाहजहां की असली कब्र का दीदार

तीन दिन का सालाना उर्स ही ऐसा मौका होता जब ताजमहल में मुगल बादशाह शाहजहां और उनकी बेगम मुमताज महल की असलीं कब्रें देखी जा सकती हैं.

मोहब्बत की निशानी ताज महल के सभी दीवाने हैं. मुगल बादशाह शाहजहां ने अपना नाम सफेद संगमरमर की इस बेजोड़ इमारत को बनवा कर अमर कर लिया. भारत में शाहजहां शायद अकेला ऐसा मुगल बादशाह हुआ हैं जिनका सालाना उर्स धूम धाम से ताजमहल के अन्दर तीन दिन तक मनाया जाता है. ऐसा इसलिए क्योंकि अब भी आगरा और उसके आसपास के लोग उसे बादशाह से ज्यादा अल्लाह का वली (अल्लाह का नेक बंदा) मानते हैं. इसी आगरा में शाहजहां के दादा मुगल बादशाह अकबर का भी मकबरा सिकंदरा में स्थित है लेकिन ऐसा कोई उर्स नहीं होता हैं.

भारतीय पुरातत्व विभाग मुगल बादशाह शाहजहां के सालाना उर्स का नोटिफिकेशन जारी करता है. तीन दिन तक चलने वाले इस आयोजन में पहले दो दिन आधे दिन फ्री एंट्री होती है और तीसरे दिन पूरे दिन फ्री एंट्री. विभाग के अधिकारियों के मुताबिक 1653 से यह परंपरा चली आ रही हैं. हर साल इस्लामिक कैलेंडर के रजब के महीने की 25-26-27 तारीख को उर्स मनाया जाता हैं. इस बार ये अप्रैल 23-25 तक मनाया गया.  शाहजहां (1627-1658) का नाम इतिहास में खूबसूरत और भव्य इमारत बनवाने के लिए प्रसिद्ध हैं. उनकी बनवाई हुई दिल्ली की जामा मस्जिद, लाल किला और लाहौर की मोती मस्जिद आज भी अपनी शान और शौकत के लिए जानी जाती हैं.

इन सबमें ताजमहल की एक अलग पहचान है. शाहजहां ने इसे अपनी सबसे प्रिय पत्नी मुमताज महल की याद में बनवाया था. ताजमहल में ही शाहजहां और मुमताज महल की कब्रें बनी हुई हैं. शाहजहां और उसकी पत्नी की असली कब्र ताजमहल के तहखाने में मौजूद हैं. ऊपर जो कब्र दिखाई जाती है वो उसकी मात्र प्रतिकृति हैं.

ताजमहल के मुख्य गुम्बद के नीचे मौजूद ये तहखाना बंद रहता है. इसके अन्दर जाने की किसी को भी इजाजत नहीं है. ताजमहल में हर साल तीन दिन के लिए शाहजहां की असली कब्र को लोगों के देखने के लिए खोला जाता हैं और तमाम रस्में होती हैं.

दिलचस्प ये हैं शाहजहां के उर्स का सारा काम उसके दरबार के गुलाम होने का दावा करने वाले अभी भी देखते हैं. खुद्दाम रोज़ा कमेटी के अध्यक्ष हाजी ताहिरुद्दीन बताते हैं, "हम लोग शाहजहां के गुलाम हैं. हमारी छठी पीढ़ी उर्स मना रही हैं. सभी वली का उर्स होता है तो शाहजहां का भी होता हैं. शाहजहां सिर्फ बादशाह नहीं बल्कि नेक, अल्लाह परस्त राजा था. " ताहिरुद्दीन का दावा है कि उनके वंशज शाहजहां के दरबार में थे. भारतीय पुरातत्व विभाग के पास हालांकि ऐसा कोई रिकॉर्ड नहीं है जिससे ताहिरुद्दीन के शाहजहां के गुलाम होने की पुष्टि हो.

भारतीय पुरातत्व विभाग में आगरा सर्किल के सुपरिन्टेंडेंट डॉ भुवन विक्रम बताते हैं, "मौजूद रिकॉर्ड के हिसाब से 1632 से मुमताज महल का उर्स शुरू हुआ था. शाहजहां तब जिंदा थे और खुद करवाते थे. उनकी मृत्य के बाद ये उर्स अब शाहजहां का होने लगा. हमारा विभाग ताजमहल का कस्टोडियन हैं इसलिए हम अपनी देख रेख में करवाते हैं. शाहजहां के दरबारी होने की बात बिलकुल मिथ्या है.” 

उर्स के दौरान शाहजहां की असली कब्र पर फूलों की चादर चढ़ाई जाती हैं, उसकी धुलाई भी होती हैं. फातिहा पढ़ा जाता हैं. फिर सात रंग के कपड़ों की लगभग एक किलोमीटर लम्बी चादर पेश की जाती है. मुख्य द्वार पर नगाड़े और शहनाई से स्वागत किया जाता हैं. संदल की रस्म, सर पर रख कर फूलों की चादर पेश करना और मिलाद जैसे अनुष्ठान भी होते हैं.

रॉयल गेट से कव्वालियों के साथ संदल के थाल सर पर लेकर लोग आये. सिर्फ शाहजहां ही नहीं बल्कि पास में स्थित मुमताज महल की कब्र पर भी चादर चढ़ाई जाती है. इस बार भी सारे प्रोग्राम जोर शोर से हुए. दिलचस्प ये रहा कि इस बार एक कोई प्रिंस तूसी भी आ गए, चमकीली शेरवानी में उन्होंने अपने को शाहजहां का वंशज होने का दावा किया और फूलों की चादर पेश की.

 

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