Sunday ,19th May 2024

असफल कारोबारी योजनाओं के लिये एक और मौका

असफल कारोबारी योजनाओं के लिये एक और मौका

भारत सरकार ने ऐसी औद्योगिक परियोजनाओं को एक मौका देने का फैसला किया है, जो पहले के कानूनी नियम-कायदों पर खरी नहीं उतर सकी थीं. विश्लेषकों के मुताबिक इस फैसले से स्थानीय समुदायों के हित प्रभावित होंगे.

देश के पर्यावरण मंत्रालय ने पिछले हफ्ते उद्योग जगत को राहत देते हुये एक फैसला लिया है. इस फैसले के तहत ऐसी औद्योगिक परियोजनाओं को छह महीने का समय दिया जायेगा, जो पहले नियामकीय और कानूनी अनुमति प्राप्त करने में असफल रही थीं. सरकार ऐसी योजनाओं को नियमों के अनुरूप ढलने के लिये समय देना चाहती है. लेकिन विशेषज्ञों ने इस पर आपत्ति जतायी है.

सेंटर फॉर पॉलिसी रिसर्च की विश्लेषक कांची कोहली के मुताबिक इस फैसले से उद्योग जगत को नियमों की अनदेखी करने का मौका मिलेगा. उन्होंने कहा कि ऐसे कदमों से नियामकीय उल्लंघन के मामलों में वृद्धि होगी और बड़े पैमाने पर सार्वजनिक नुकसान होगा. कोहली ने सरकार की इस पहल को नियम न मानने वालों के लिये "पीछे का रास्ता" बताया है. 

देश में जंगलों, नदियों और समुद्री तटों की रक्षा के लिए कई कानून बनाये गये हैं लेकिन इन्हें लागू करने में तमाम तरह की खामियां है. वहीं अवैध खनन और औद्योगिक प्रदूषण भूमि और जल संसाधनों को तबाह कर रहे हैं, जिसका सबसे अधिक असर इन पर निर्भर समुदायों को हो रहा है.

 पर्यावरण मंत्रालय ने कहा है कि अगले छह महीने में जिन परियोजनाओं के लिये आवेदन प्राप्त होंगे उसका मूल्यांकन एक समिति द्वारा किया जायेगा. विश्लेषकों के मुताबिक तेजी से बढ़ती अर्थव्यवस्था में भूमि और संसाधनों का प्रयोग औद्योगिक विकास के लिए किया जाना लाजमी है, लेकिन सरकार के ऐसे फैसलों से नियामकीय उल्लंघनों में वृद्धि होगी.

साल 2013 में बना भूमि अधिग्रहण कानून, पर्यावरण और इसके प्रभावों के आकलन के लिये सख्त नियम निर्धारित करता है. लेकिन कई राज्यों ने इस कानून के मूल स्वरूप में बदलाव किया है. राज्यों का तर्क है कि नियामकीय देरी राज्यों के विकास में बाधक है. साल 2013 के इस कानून को बनाने की प्रक्रिया में शामिल एक पूर्व मंत्री ने कहा कि देश में भूमि अधिग्रहण से जु़ड़े कानूनी मसलों को लेकर खींचतान है क्योंकि इन नियमों को खत्म करने का सीधा असर किसानों और अन्य कमजोर समुदायों पर पड़ता है.

हाल में पर्यावरणीय जवाबदेही तय करने के लिये उत्तराखंड की एक अदालत ने गंगा और यमुना जैसी नदियों को जीवित घोषित करार दिया है और इन्हें कानूनी अधिकार भी दिये हैं.

Comments 0

Comment Now


Total Hits : 278022