Sunday ,19th May 2024

सोने के इस्तेमाल में देश नाकाम

सोने के इस्तेमाल में देश नाकाम

मंदिरों और घरों में बेकार पड़े हजारों टन सोने का इस्तेमाल करने की भारत सरकार की महत्वाकांक्षी योजना अधिक लागत और मामूली लाभ की चिंताओं के चलते अधर में लटकती दिख रही है. ऐसे में भारत सरकार की ये योजना खतरे में है.

योजना के 16 महीने बाद अब तक महज 7 टन सोना ही निकल कर सामने आया है. यह उस 24 हजार टन सोने के मुकाबले बेहद कम है, जिसके निजी हाथों में होने का अनुमान था. कारोबारियों और एक सरकारी अधिकारी के मुताबिक अब तक जितना सोना भी सामने आया है वह भी केवल मंदिरों का है.

इंडियन एसोसिएशन ऑफ हॉलमार्किंग सेंटर्स के अध्यक्ष हर्षद अजमेरा ने बताया, "तकरीबन 80 फीसदी लोगों ने इस योजना को सिरे से नकार दिया है. सरकार ने जिन चार दर्जन केंद्रों को सोने की शुद्धता की जांच के लिये मंजूरी दी है वहां ना के बराबर सोना जांच के लिये आया है."

झंझटों से परेशान ग्राहक

इस योजना में करीब 50 ग्राम सोना जमा कराने पर विचार करने वाले गणपत शल्के कहते हैं, "इस योजना से आपको कुछ नहीं मिलता, सोना जमा करने में तमाम झंझट हैं इसलिये ये सब सिरदर्दी लेना भी बेकार है." 

नाकामी की कगार पर खड़ी इस योजना को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने नवंबर 2015 में जोर-शोर से पेश किया था क्योंकि देश एक गैर-जरूरी चीज पर अरबों डॉलर के खर्च में कटौती करने के तरीके तलाश रहा था. मार्च 2016 में देश के कारोबारी घाटे में सोने की हिस्सेदारी तकरीबन 27 फीसदी थी.

चीन के बाद भारत दुनिया में सबसे अधिक सोना आयात करने वाला देश है. भारत में आयात किया जाने वाला सोना शादियों, त्योहारों पर इस्तेमाल होता है. साथ ही इसे निवेश का बेहतर विकल्प भी माना जाता है. 

सरकार की यह योजना सोना सहेजकर रखने वालों के लिए थी ताकि वे ब्याज और सोने के बदले नकद लेकर बेकार पड़े सोने को बैंक में जमा करा दें. सरकार की योजना इसे पिघला के नीलामी कर ज्वैलर्स को देने की थी ताकि इसके आयात में कमी लाई जा सके. लेकिन हकीकत यह है कि सोने की शुद्धता और इसके पिघलाने पर होने वाला खर्च सोनाधारक को झेलना होता है. इस पर मिलने वाले ब्याज की दर भी महज 2.5 फीसदी है लेकिन नकदी जमा पर बैंक की ओर से 7-8 फीसदी तक का ब्याज दिया जा रहा है. अगर कोई ग्राहक 25 ग्राम ज्वैलरी को बदल कर और उसकी शुद्धता की जांच कराता है तो उसकी कीमत 3-4 फीसदी तक कम हो जाती है".

बैंकों का रुख

आम लोग जो वाकई इस योजना में शामिल होना चाहते हैं वे भी तमाम झंझटों के चलते इससे दूरी बनाये हुये हैं. एक कारोबारी ने बताया कि वह इस योजना का लाभ लेना चाहते हैं और करीब चार बार बैंक के चक्कर लगा चुके हैं लेकिन बैंक उनसे सोना नहीं ले रहे हैं. कुछ बैंक कह रहे हैं कि उनके पास इस योजना से जुड़े निर्देश नहीं है और वे प्रक्रिया से वाकिफ भी नहीं हैं. भारतीय बैंक एसोसिएशन के एक वरिष्ठ अधिकारी के मुताबिक इस योजना से बैंकों को कोई खास लाभ नहीं मिल रहा है.

इंडिया गोल्ड पॉलिसी सेंटर ने अपनी हालिया रिपोर्ट में कहा था कि बैंक इस प्रावधान को लेकर चिंतित हैं. उन्हें डर है कि 15 साल तक रहने वाले ये प्रावधान मुद्रा और नकदी का जोखिम बढ़ा सकते हैं.

वित्त मंत्रालय के प्रवक्ता ने इस मसले पर कुछ भी कहने से साफ इनकार कर दिया. एसोसिएशन ऑफ गोल्ड रिफाइनरी ऐंड मिंट के सचिव जेम्स जोस के मुताबिक सभी पक्ष जैसे कि शुद्धता केंद्र, रिफाइनर आदि योजना के लिये तैयार हैं लेकिन बैंकों के शामिल हुये बगैर ये कुछ नहीं कर सकते. 

इंडियन बुलियन ऐंड ज्वैलर्स एसोसिएशन ने सरकार से इस योजना पर दोबारा विचार करने की अपील की है ताकि ग्राहकों की समस्याओं से निपटा जा सके और बैंकों पर दबाव बनाया जा सके. एसोसिएशन के सचिव के मुताबिक अगर इस दिशा में कदम नहीं उठाये गये तो आयात में गिरावट नहीं लाई जा सकेगी.

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