Sunday ,19th May 2024

आज भी ज्यादा जिद्दी है ये पत्रकार

 

 

आज भी ज्यादा जिद्दी है ये पत्रकार

एक बहुत प्यारी सी लड़की है एकदम पाकीजा सी. जो शायद पत्रकार बनना चाहती है, महकता आंचल और पाकीजा आंचल जैसी पत्रिकाओं की प्रेम कहानियों को पढ़ कर रोती है हंसती है.
और खुद भी वैसा लिखना चाहती है. 'राइटर' बनने का बड़ा शौक है उसे. छोटी मोटी बातें लिख भी रही है लेकिन मात्रागत और वर्णगत गलतियां बहुत करती है.
लेकिन समझाने पर तुरंत एंड्रॉयड मोबाइल न होने का बहाना बनाकर साफ निकल भी जाती है. यही नहींं एक दिन उसने अपनी एक दोस्त से कहा भी था कि- 'जिस दिन मेरी कोई खबर नेशनल मैगज़ीन या अख़बार में छप गयी उस दिन समझो मैं पत्रकार  बन गई'...
जब पहली बार उससे मिला था तब एक मासूम सी थी वो जो सिर्फ एक सपना लेकर मेरे पास आई थी और मेने उसकी मासूमियत को देखते हुए सिन्धी भाषा का न्यूज़ एंकर बन्ने को कहा क्योंकि उसकी मूल भाषा सिन्धी थी .. संजना की मर्जी की हर बात मनवाने की फितरत ने उसे बहुत ज्यादा जिद्दी बना डाला था और मे भी हर मुराद हंस कर पूरी कर दिया करता था ये सोचकर की चलो कुछ अच्छा करना चाहती होगी .. और मेरे साथ काम करने वालो को ये पसन्द नहीं आता उन्होंने कई बार बोला की आप इसकी आदत बिगाड़ रहे हो, तो मै हंसकर बोल पड़ता की अभी बच्ची है और अभी बहोत कुछ सीखना है उसे पत्रकारिता में
उसकी एक जिद्द को मेने बिलकुल ही नकार दिया वो जिद्द थी की फिल्ड में खबर करना तो उसे ये बर्दास्त न हुआ और पूरा दिन बिना कुछ खाये बगैर खुद को अपने रूम में बन्द कर ली.और ऑफिस के किसी भी व्यक्ति का फ़ोन भी नहीं लिया ..
शाम को में दफ्तर से फ्री होकर उसके घर पंहुचा कर आवाज लगायी . कि गेट खोलिये मैं हूं. उसने आवाज पहचान झट से गेट खोल दीया . और मेरे हांथो में खाने की थाली देख भड़क गयी .और बोली अगर आप मेरी मां के पक्ष लेकर मुझे कुछ प्रवचन सुनाने आये है तो माफ करे सम्पादक जी . मुझे आपकी कोई बात नहीं सुननी. सम्पादक जी रूम में खाने को टेबल पर रख कर बोला . कि मैं तुम्हारा दोस्त हूं तो मैं तुम्हारे ही पक्ष में रहूंगा तुम्हे आखिर चाहिए क्या मुझे भी बता दो.
मुझे लगा की वो फिर से यही राग अलापेगी की मुझे फिल्ड में जाकर पत्रकारिता करनी है पर उसने तो अब नया राग चालू कर दिया था की मेरी सारी सहेलियों के पास एप्पल का न्यु मॉडल का फोन है और मेरे पास अभी भी सैमसंग का. मुझे बहुत शर्मिंदगी होती है. हमारे पास आखिर कमी क्या है जो मां इतना कंजूसी बरतती हैं वो  इतनी लम्बी बात क्रोधवश एक सांस में बोल गई. और में  मधुर मुस्कान मुख मण्डल पर प्रघट किये हुए उसे सुन रहा था  और उसकी  बात खत्म होते ही बोला की इतनी  सी बात के लिए रूठी हो चलो मैं बोलता हूं आंटी से फोन के लिए. मुझे लगा की अभी बचपना है जैसे जैसे बड़ी होंगी और पत्रकारिता की समझ आयगी  इनमे समझदारी आएगी ये भी समझ जाएंगी और संतोष करना सीख जाएंगी ..

जेसे जेसे उसने पत्रकारिता को समझना शुरू किया तब उसकी लेखनी में दिन प्रतिदिन धार आती गयी और आज संजना कई बड़े पत्र पत्रिका के लिए लिखती है और खुद का एक न्यूज़ पोटर्ल भी चलाती है .और एक दैनिक अख़बार में सम्पादक के पद पर कार्यरत भी है ..आज उसे देख कर लगता है क्या यह वही  संजना है जो कुछ दिनों पहले बच्चो जेसी जिद्दी थी .. हा उसकी कुछ हरकते आज भी वैसी ही है .. अब वो खबरों के लिए लडती है और उसी तरह जिद्दी भी है  ...  


 

 

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